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भारतीय अर्थव्यवस्था 

पूँजी बाजार के उपकरण

Posted on May 15, 2024 by  764

पूँजी बाजार के उपकरण निवेशकों और उधारकर्ताओं के बीच पूँजी के प्रवाह के लिए अभिन्न अंग हैं। इक्विटी, ऋण, डेरिवेटिव सहित विभिन्न प्रकार के पूँजी बाजार उपकरण दीर्घकालिक वित्तीय संसाधनों के एकत्रण और आवंटन की सुविधा प्रदान करते हैं। इन उपकरणों को समझना पूँजी बाजार और विशेष रूप से भारतीय वित्तीय बाजार की समग्र समझ विकसित करने के लिए आवश्यक है। NEXT IAS के इस लेख का उद्देश्य पूँजी बाजार के विभिन्न उपकरणों का विस्तार से अध्ययन करना है, जिसमें शेयर, बॉन्ड, डेरिवेटिव, म्यूचुअल फंड, एक्सचेंज ट्रेडेड फंड (ETF), विदेशी निवेश के उपकरण और अन्य संबंधित अवधारणाएँ शामिल हैं।

  • पूँजी बाजार वित्तीय बाजार के उस हिस्से को संदर्भित करता है जो 1 वर्ष से अधिक की मध्यम और दीर्घकालिक परिसम्पत्तियों एवं निधियों के लेन-देन के लिए एक बाजार प्रदान करता है।
    • इस प्रकार, पूँजी बाजार मध्यम से दीर्घकालिक परियोजनाओं और निवेशों के लिए उधार की जरूरतों को पूरा करता है।
  • लंबी परिपक्वता अवधि के कारण पूँजी बाजार दीर्घकालिक निधियों के एकत्रण और आवंटन की सुविधा प्रदान करता है।

पूँजी बाजार की संरचना, प्रमुख भागीदार, प्रमुख उपकरण और अन्य पहलुओं का अध्ययन पूँजी बाजार पर हमारे विस्तृत लेख में किया गया है।

“पूँजी बाजार के उपकरण” वाक्यांश का तात्पर्य पूँजी बाजार के अंतर्गत उपयोग किए जाने वाले विभिन्न प्रकार के वित्तीय उपकरणों से है। इनमें वित्तीय प्रतिभूतियाँ और डेरिवेटिव शामिल हैं जो ऐसे माध्यम के रूप में कार्य करते हैं जिनके माध्यम से पूँजी एकत्रित की जाती है, निवेश किया जाता है और उनका व्यापार किया जाता है। ये उपकरण सामूहिक रूप से, पूँजी बाजार के भागीदारों, जैसे निवेशकों, कंपनियों और सरकारी संस्थाओं आदि के बीच धन के प्रवाह को सुगम बनाते हैं।

पूँजी बाजार में निवेश करने के लिए उपयोग किए जाने वाले विभिन्न उपकरणों को निम्न प्रकारों में वर्गीकृत किया जा सकता है:

  • शेयर या स्टॉक
  • ऋण उपकरण
  • डेरिवेटिव
  • म्यूचुअल फंड
  • एक्सचेंज ट्रेडेड फंड (ETF)
  • विदेशी निवेश के उपकरण

पूँजी बाजार उपकरण के प्रत्येक प्रकार पर अगले अनुभागों में विस्तार से चर्चा की गई है।

  • शेयर या स्टॉक एक कंपनी द्वारा जारी की गई प्रतिभूतियों (Securities) को संदर्भित करते हैं, जो किसी कंपनी के स्वामित्व के एक हिस्से का प्रतिनिधित्व करते हैं।
    • किसी कंपनी की पूँजी को शेयरों में विभाजित किया जाता है। प्रत्येक शेयर कंपनी के स्वामित्व की एक इकाई के बराबर होता है और कंपनी के लिए पूँजी को एकत्रित करने के लिए विक्रय किया जाता है।
  • जब कोई निवेशक कोई शेयर या स्टॉक खरीदता है, तो अनिवार्य रूप से कंपनी की संपत्ति और आय में हिस्सेदारी प्राप्त करता है।
  • कंपनी अपने निवेश पर रिटर्न के रूप में शेयरधारकों को लाभांश का भुगतान करती है।
    • इस प्रकार, शेयरधारकों को कंपनी से रिटर्न के रूप में ब्याज नहीं, बल्कि लाभांश प्राप्त होता है।
  • मुख्य रूप से शेयर 2 प्रकार के होते हैं।
  • इक्विटी शेयर अपने धारकों को कंपनी की आय/लाभ में हिस्सेदारी के साथ-साथ मतदान का अधिकार भी देते हैं।
  • इक्विटी शेयरों के धारकों को दिया जाने वाला लाभांश निश्चित नहीं होता है बल्कि कंपनी के प्रदर्शन पर निर्भर करता है।
    • इस प्रकार, यदि कंपनी लाभ अर्जित करती है तो उन्हें लाभांश प्राप्त होता है, लेकिन यदि कंपनी को घाटा होता है तो उन्हें घाटा भी वहन करना पड़ता है।
  • इक्विटी शेयरधारकों को कंपनी का वास्तविक मालिक (Real Owners) माना जाता है।
  • वरीयता या अधिमान शेयर अपने धारकों को केवल कंपनी की आय/लाभ में हिस्सेदारी देते हैं, लेकिन मतदान का अधिकार नहीं देते हैं।
  • वरीयता या अधिमान शेयरों के धारकों को दिया जाने वाला लाभांश निश्चित होता है।
    • इस प्रकार, उन्हें दिए गए ऋण पर ब्याज की तरह लाभांश की एक निश्चित राशि का अधिकार होता है।
  • वरीयता शेयरों को इसलिए जारी किया जाता है क्योंकि यदि कंपनी बंद हो जाती है, तो इन शेयरों को इक्विटी शेयरधारकों से पहले हिस्सेदारी प्राप्त करने का अधिमान्य अधिकार होता है।
  • वरीयता या अधिमान शेयरों को आगे 2 प्रकारों में वर्गीकृत किया जाता है:

संचयी वरीयता या अधिमान शेयर (Cumulative Preference Shares)

संचयी वरीयता शेयर वे शेयर होते हैं जिनका लाभांश, यदि कंपनी द्वारा किसी विशेष वर्ष में घाटे या किसी अन्य कारण से भुगतान नहीं किया जाता है, तो जमा हो जाता है और अगले वर्ष या उसके बाद भुगतान कर दिया जाता है।

गैर-संचयी वरीयता या अधिमान शेयर (Non-Cumulative Preference Shares)

गैर-संचयी वरीयता शेयर वे शेयर होते हैं जिनका लाभांश, यदि कंपनी द्वारा किसी विशेष वर्ष में घाटे या किसी अन्य कारण से भुगतान नहीं किया जाता है, तो जमा नहीं होता है और उसे छोड़ दिया जाता है।

  • ऋण उपकरण ऐसे उपकरण हैं जिनके माध्यम से जारीकर्ता निवेशकों से धन उधार लेते हैं।
  • इक्विटी प्रतिभूतियों के विपरीत, ऋण उपकरणों के धारकों के पास स्वामित्व अधिकार नहीं होते हैं।
    • इस प्रकार, ऋण उपकरण निवेशक से जारीकर्ता (Issuer) को दिए गए ऋण के समान होते हैं। जारीकर्ता बॉन्ड पर ब्याज की एक निश्चित दर का भुगतान करने और एक निश्चित तिथि पर मूल राशि चुकाने के लिए सहमत होता है।
  • ऋण उपकरण जारीकर्ता (Issuer) उपकरणों के माध्यम से उधार ली गई पूँजी पर ब्याज का भुगतान करने के लिए उत्तरदायी होता है, चाहे लाभ हो या हानि।
अंतर का आधार (Basis of Difference)ऋण उपकरण (Debt Instruments)शेयर (Shares)
अर्थ (Meaning)निवेशकों से स्वामित्व अधिकारों में कोई हिस्सेदारी प्रदान किए बिना, निवेशकों से धन उधार लेने के लिए जारी की गई प्रतिभूतियाँ।एक कंपनी द्वारा जारी की गई प्रतिभूतियाँ, जो कंपनी के स्वामित्व के एक हिस्से का प्रतिनिधित्व करती हैं।
प्रकार (Type)ऋण, उधार के रूप में लिया गया धन हैइक्विटी, स्वामित्व प्रदान करने वाला फंड है।
अवधि (Term)ऋण को सीमित अवधि के लिए रखा जा सकता है और उस अवधि की समाप्ति के बाद चुकाया जाना चाहिए।इक्विटी को लंबी अवधि के लिए रखा जा सकता है।
जोखिम (Risk)इक्विटी से कम जोखिम है।यहां शामिल जोखिम ऋण उपकरण से अधिक है।
आकार (Forms)ऋण, डिबेंचर और बॉन्ड के रूप में हो सकता है।इक्विटी शेयरों और स्टॉक के रूप में हो सकती है।
सुरक्षा (Security)ऋण उपकरण सुरक्षित या असुरक्षित हो सकते हैं।इक्विटी हमेशा असुरक्षित होती है।

इनके जोखिम प्रोफाइल और अन्य विशेषताओं के आधार पर, विभिन्न प्रकार के ऋण उपकरण होते हैं। पूँजी बाजार में उपयोग किए जाने वाले ऋण प्रतिभूतियों के मुख्य प्रकारों पर अगले अनुभागों में चर्चा की गई है।

  • बॉन्ड एक प्रकार का ऋण उपकरण है जिसके अंतर्गत एक निवेशक (ऋणदाता), एक जारीकर्ता (ऋण लेने वाला) को ऋण प्रदान करता है।
    • इस प्रकार, जब कोई निवेशक बॉन्ड खरीदता है, तो इसका अर्थ है कि निवेशकर्त्ता ने अनिवार्य रूप से बॉन्ड जारीकर्ता को ऋण दिया है।
  • ठीक उसी तरह जैसे ऋण के मामले में, बॉन्ड जारीकर्ता बॉन्डधारक को भुगतान करता है
    • नियमित अंतराल पर ब्याज (जिसे कूपन भुगतान (Coupon Payment) भी कहा जाता है), और
    • बॉन्ड की परिपक्वता तिथि पर मूल राशि (जिसे अंकित मूल्य (Face Value) भी कहा जाता है)।
  • बॉन्ड द्वारा भुगतान किया गया प्रभावी रिटर्न को बॉन्ड का रिटर्न या बॉन्ड यील्ड (Bond Yield) कहा जाता है।
    • उदाहरण के लिए, यदि कोई 100 अंकित मूल्य का बॉन्ड खरीदता है और एक वर्ष के लिए 10 का कूपन ब्याज प्राप्त करता है, तो बॉन्ड का प्रतिफल 10% ((10/100)x100) होता है।
  • आम तौर पर इन्हें शेयरों या स्टॉक की तुलना में अधिक सुरक्षित निवेश माना जाता है, मुख्यतः क्योंकि ये निश्चित ब्याज भुगतान के माध्यम से स्थिर आय प्रदान करते हैं।
  • जारीकर्ताओं के आधार पर, विभिन्न प्रकार के बॉन्ड होते हैं जिनकी चर्चा नीचे की गई है।
  • सरकारी बॉन्ड राष्ट्रीय सरकारों या निचले स्तर की सरकारों द्वारा जारी किए गए बॉन्ड को संदर्भित करते हैं।
    • राष्ट्रीय स्तर पर, इन सरकारी बॉन्डों को “संप्रभु” ऋण के रूप में जाना जाता है और ये किसी राष्ट्र की अपने नागरिकों के कराधान के माध्यम तथा मुद्रा मुद्रित करने की क्षमता द्वारा चुकाए जाते हैं।
  • सरकारी बॉन्ड सरकारी प्रतिभूतियों (G-Secs) के दो प्रकारों में से एक हैं।
    • एक अन्य प्रकार की सरकारी प्रतिभूति (G-Secs) ट्रेजरी बिल (Treasury Bills) है, जिसकी परिपक्वता अवधि 1 वर्ष से कम होती है और इसलिए यह मुद्रा बाजार उपकरण है।
  • नगरपालिका बॉन्ड सिविल परियोजनाओं को वित्तपोषित करने के लिए राज्य, नगरपालिका या जिले द्वारा जारी की गई ऋण प्रतिभूतियाँ हैं।
  • उनका लक्ष्य शहरी स्थानीय निकायों (ULB) या नगर पालिकाओं की वित्तीय जरूरतों को पूरा करना है।
  • भारत में नगरपालिका बॉन्ड पहली बार 1997 में जारी किए गए थे, 74वें संविधान संशोधन के 5 साल बाद शहरी स्थानीय निकायों (ULB) को संवैधानिक बनाया गया था।
  • भारत के बड़े शहरों और कस्बों के लिए अपने चरमराते बुनियादी ढांचे के उन्नयन के लिए नगरपालिका बॉन्ड बाजार का विकास महत्त्वपूर्ण है।
    • यद्यपि , अभी तक, भारत में नगरपालिका बाजार का विकास अभी तक अधिक नहीं हुआ है, इसका प्राथमिक कारण उनकी गैर-व्यापारिकता और नियामक स्पष्टता की कमी है।
  • कॉर्पोरेट बॉन्ड पूँजी एकत्रित करने के लिए निगमों द्वारा जारी किए जाते हैं।
  • सरकारी बॉन्डों की तुलना में, कॉर्पोरेट बॉन्डों के द्वारा उच्च रिटर्न प्रदान किया जाता है क्योंकि किसी कंपनी के सरकार की तुलना में चूक करने का जोखिम अधिक होता है।
  • कॉर्पोरेट बॉन्ड मुख्य रूप से 2 प्रकार के होते हैं:

परिवर्तनीय बॉन्ड (Convertible Bonds)

  • परिवर्तनीय बॉन्ड वे बॉन्ड होते हैं जिन्हें आवश्यकतानुसार पूर्वनिर्धारित संख्या में शेयरों में परिवर्तित किया जा सकता है।
  • दूसरे शब्दों में, ये अनिवार्य रूप से एक बॉन्ड होते हैं जिसमें स्टॉक विकल्प अंतर्निहित होता है।

गैर-परिवर्तनीय बॉन्ड (Non-Convertible Bonds)

गैर-परिवर्तनीय बॉन्ड उन बॉन्डों को संदर्भित करते हैं जिन्हें शेयरों में परिवर्तित नहीं किया जा सकता है।

  • इम्पैक्ट बॉन्ड निवेशकों और एक कार्यान्वयन एजेंसी के बीच एक संविदात्मक समझौते का एक रूप है, जिसमें निवेशक कार्यान्वयन एजेंसी को तभी धन देते हैं, जब वह पूर्व-निर्धारित अनुभवजन्य रूप से सत्यापनीय सामाजिक संकेतकों (Pre-determined Empirically Verifiable Social Indicators) को प्राप्त करने में सक्षम होता है।
  • हाल ही में, इम्पैक्ट बॉन्ड शिक्षा, स्वास्थ्य आदि से संबंधित सामाजिक परियोजनाओं के वित्तपोषण का एक अभिनव तरीका बन गया है।
  • इम्पैक्ट बॉन्ड के कुछ लोकप्रिय उदाहरणों में शामिल हैं – USAID का उत्कर्ष बॉन्ड, विश्व बैंक का महिला आजीविका बॉन्ड आदि।
  • हरित बॉन्ड एक प्रकार का ऋण प्रतिभूतियां हैं, जिसे विशेष रूप से उन परियोजनाओं के वित्तपोषण के लिए डिज़ाइन किया गया है जिनका पर्यावरण पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
  • हरित बॉन्ड कॉर्पोरेट बॉन्ड के समान हैं। यद्यपि, ऐसे बॉन्डों की आय का उपयोग विशेष रूप से हरित परियोजनाओं जैसे नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाओं, जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को कम करने वाली परियोजना तथा जीवाश्म ईंधन के उत्सर्जन को कम करने आदि जैसी हरित परियोजनाओं के वित्तपोषण के लिए किया जाता है।
  • मसाला बॉन्ड एक वित्तीय उपकरण को संदर्भित करने के लिए प्रयोग किया जाने वाला शब्द है जिसके माध्यम से भारतीय संस्थाएं विदेशी बाजारों से भारतीय रुपये में धन एकत्रित करती है।
  • दूसरे शब्दों में, मसाला बॉन्ड अनिवार्य रूप से भारत के बाहर भारतीय संस्थाओं द्वारा जारी किए गए रुपये मूल्य के बॉन्ड होते हैं।
  • ज़ीरो-कूपन बॉन्ड को डिस्काउंट बॉन्ड के रूप में भी जाना जाता है।
  • यह एक प्रकार की ऋण सुरक्षा है, जो नियमित बॉन्डों के विपरीत, नियमित ब्याज का भुगतान नहीं करते हैं। इसके बजाय, इसे इसके अंकित मूल्य (परिपक्वता मूल्य) पर छूट पर बेचा जाता है, और इसकी परिपक्वता पर, इसके धारक को अंकित मूल्य का भुगतान किया जाता है।
  • इस प्रकार, मसाला बॉन्ड धारक का रिटर्न, खरीद मूल्य और परिपक्वता पर प्राप्त अंकित मूल्य के बीच के अंतर से आता है।
  • मुद्रास्फीति सूचकांकित बॉन्ड एक विशेष प्रकार का ऋण सुरक्षा है, जिसे निवेशकों को मुद्रास्फीति के नकारात्मक प्रभावों से बचाने के लिए डिज़ाइन किया गया है।
  • नियमित बॉन्डों के विपरीत, यह मुद्रास्फीति के स्तर के बावजूद, निरंतर रिटर्न प्रदान करता है।
  • डिबेंचर, बॉन्ड की तरह ही एक प्रकार का ऋण उपकरण है जो एक निवेशक (ऋणदाता) से एक जारीकर्ता (ऋण लेने वाला) को ऋण प्रदान करता है। यद्यपि, बॉन्डों के विपरीत, जो आमतौर पर जारीकर्ता की विशिष्ट संपत्तियों द्वारा सुरक्षित होते हैं, डिबेंचर आमतौर पर असुरक्षित होते हैं।
  • चूंकि उन्हें किसी सुरक्षा द्वारा समर्थित नहीं किया जाता है, इसलिए डिबेंचर को बॉन्ड की तुलना में अधिक जोखिम भरा माना जाता है।
मापदंड (Parameters)बॉन्ड (Bonds)डिबेंचर (Debentures)
अर्थ (Meaning)बॉन्ड एक वित्तीय साधन है जो जारीकर्ता संस्था द्वारा उसके धारकों के लिए ऋण राशि को दर्शाता है।डिबेंचर एक ऋण साधन है जिसका उपयोग दीर्घकालिक वित्त को जुटाने के लिए किया जाता है।
संपार्श्विक (Collateral)हाँ, बॉन्ड आमतौर पर संपार्श्विक (Collateral) द्वारा सुरक्षित होते हैं।डिबेंचर संपार्श्विक (Collateral) द्वारा सुरक्षित या असुरक्षित हो सकते हैं।
ब्याज दरकमअधिक
जारीकर्तासरकारी एजेंसियाँ, वित्तीय संस्थान, निगम आदि।कंपनियाँ
भुगतानसंचितआवधिक
धारकबॉन्ड धारकडिबेंचर धारक
जोखिम कारककमअधिक
परिसमापन के समय पुनर्भुगतान में प्राथमिकतापहलादूसरा
  • डेरिवेटिव दो पक्षों (क्रेता और विक्रेता) के बीच एक वित्तीय अनुबंध (Financial Contract) होता है और जिसका मूल्य / कीमत किसी एक या एक से अधिक अंतर्निहित परिसंपत्तियों और/या प्रतिभूतियों जैसे शेयरों, बॉन्ड, कमोडिटी, आदि पर निर्भर करता है।
  • खरीदार विक्रेता से एक पूर्व-निर्धारित तिथि को एक निर्धारित मूल्य पर अंतर्निहित परिसंपत्तियों को खरीदने के लिए सहमत होता है।
  • इसे डेरिवेटिव इसलिए कहा जाता है क्योंकि उनके मूल्य अंतर्निहित परिसंपत्तियों में उतार-चढ़ाव से प्राप्त होते हैं।
  • चूंकि डेरिवेटिव अनुबंधों को अंतर्निहित परिसंपत्तियों के पूर्व-समझौता मूल्य पर खरीदा/बेचा जाता है, इसलिए ये भविष्य में कीमत में होने वाले जोखिम और अनिश्चितताओं को कम करते हैं।
  • इस प्रकार, ये जोखिमों को कम करने में मदद करते हैं इसलिए इन्हें जोखिम- बचाव उपकरणों (Risk-hedging Instruments) के रूप में उपयोग किया जाता है।
  • पूँजी बाजार में उपयोग किए जाने वाले डेरिवेटिव के कुछ सामान्य रूप निम्न प्रकार हैं:
    • फॉरवर्ड अनुबंध (Forward Contracts)
    • वायदा या फ्यूचर अनुबंध (Future Contracts )
    • ऑप्शन या विकल्प (Options)
    • स्वैप या अदला-बदली (Swaps)
  • फॉरवर्ड अनुबंध दो पक्षों के बीच – एक क्रेता और एक विक्रेता – के मध्य आज के सहमत मूल्य पर भविष्य की तिथि पर कुछ खरीदने या बेचने के लिए एक समझौता है।
    • पूर्व-समझौता मूल्य को स्ट्राइक मूल्य (Strike Price) कहा जाता है।
  • फॉरवर्ड अनुबंधों का कारोबार आम तौर पर ओवर-द-काउंटर (OTC) होता है, जिसका अर्थ है कि यहाँ पर प्रत्यक्ष रूप दो शामिल पक्षों के बीच बातचीत की जाती है, न कि किसी केंद्रीयकृत एक्सचेंज पर।
    • इस प्रकार, ये अनियमित (Unregulated) होते हैं।
  • वायदा अनुबंधों को फ्यूचर अनुबंध भी कहा जाता है।
  • फॉरवर्ड अनुबंधों के समान, एक फ्यूचर अनुबंध दो पक्षों के बीच – एक क्रेता और एक विक्रेता – के बीच आज के सहमत मूल्य पर भविष्य की तिथि पर कुछ खरीदने या बेचने के लिए एक समझौता है।
    • पूर्व-समझौता मूल्य को स्ट्राइक मूल्य (Strike Price) भी कहा जाता है।
  • फॉरवर्ड अनुबंधों के विपरीत, फ्यूचर अनुबंधों का कारोबार संगठित एक्सचेंजों पर किया जाता है।
    • इस प्रकार, ये विनियमित (Regulated) होते हैं।

फॉरवर्ड अनुबंध और फ्यूचर्स अनुबंध के बीच अंतर

यद्यपि दोनों समान प्रकृति के होते हैं, लेकिन फिर भी फॉरवर्ड कॉन्ट्रैक्ट और फ्यूचर्स कॉन्ट्रैक्ट (वायदा) कई मामलों में भिन्न होते हैं, जैसा कि नीचे देखा जा सकता है।

फॉरवर्ड अनुबंध (Forward Contracts)फ्यूचर्स अनुबंध (Future Contracts)
ओवर-द-काउंटर (OTC) में कारोबार किया जाता है, इस प्रकार ये अनियमित होते हैं।संगठित एक्सचेंजों पर कारोबार किया जाता है, इस प्रकार ये विनियमित होते हैं।
केवल एक बार निपटान किया जाता हैं – अनुबंध की अंतिम तिथि पर।अंतर्निहित परिसंपत्ति की कीमत में परिवर्तन का निपटान दैनिक आधार पर किया जाता है।
  • ऑप्शन दो पक्षों के बीच एक अनुबंध होता है – एक क्रेता और एक विक्रेता – जो अनुबंध धारक को भविष्य की तिथि पर आज के सहमत मूल्य पर कुछ खरीदने या बेचने का अधिकार देता है, लेकिन बाध्यता नहीं।
  • इस प्रकार, फॉरवर्ड कॉन्ट्रैक्ट और फ्यूचर्स कॉन्ट्रैक्ट (वायदा) के विपरीत, अनुबंध धारक (Holder of the Contract) पर अनुबंध को पूरा करने का कोई दायित्व नहीं होता है।
  • पूर्व-समझौता मूल्य को स्ट्राइक मूल्य (Strike Price) कहा जाता है।
  • जो व्यक्ति ऑप्शन का विक्रय करता है, उसे “ऑप्शन राइटर” के रूप में दर्शाया जाता है। जो व्यक्ति ऑप्शन खरीदता और रखता है उसे “ऑप्शन धारक” कहा जाता है।
    • ऑप्शन धारक द्वारा अनुबंध को पूरा करने का अधिकार प्राप्त करने (लेकिन दायित्व नहीं) के लिए ऑप्शन राइटर को एक प्रीमियम मूल्य का भुगतान किया जाता है।
  • ऑप्शन का कारोबार संगठित एक्सचेंजों (Organized Exchanges) के माध्यम से किया जाता है।
    • इस प्रकार, ये विनियमित (Regulated) होते हैं।
  • अनुबंध धारक को उपलब्ध अधिकार के प्रकार के आधार पर, ऑप्शन के दो प्रकार होते हैं – कॉल ऑप्शन और पुट ऑप्शन।

कॉल ऑप्शन (Call Option)

कॉल ऑप्शन एक प्रकार का ऑप्शन है जो ऑप्शन धारक को पूर्व-निर्धारित तिथि पर एक पूर्व-निर्धारित मूल्य पर अंतर्निहित संपत्ति को “खरीदने (Buy)” का अधिकार देता है।

पुट ऑप्शन (Put Option)

पुट ऑप्शन एक ऐसा विकल्प है जो ऑप्शन धारक को एक पूर्व-निर्धारित तिथि पर एक पूर्व-निर्धारित मूल्य पर अंतर्निहित संपत्ति को “बेचने (Sell)” का अधिकार देता है।

कॉल ऑप्शन और पुट ऑप्शन के बीच अंतर

कॉल ऑप्शन (Call Option)पुट ऑप्शन (Put Option)
अधिकार अंतर्निहित संपत्ति (Underlying Asset) को खरीदने का अधिकार देता है।अंतर्निहित संपत्ति (Underlying Asset) को बेचने का अधिकार देता है।
आमतौर पर तब प्रयोग किया जाता है जब भविष्य में अंतर्निहित संपत्ति (Underlying Asset) के मूल्य की बढ़ने की उम्मीद हो।आमतौर पर तब प्रयोग किया जाता है जब भविष्य में अंतर्निहित संपत्ति (Underlying Asset) की कीमतों के गिरने की उम्मीद हो।
  • स्वैप दो पक्षों के बीच एक अनुबंध होता है जिसमें दो अलग-अलग वित्तीय साधनों के पूर्व-सहमत नकदी प्रवाह (Pre-agreed Cash Flows) का आदान-प्रदान किया जाता है।
  • स्वैप का प्रयोग आम तौर पर ब्याज दरों और मुद्राओं के बाजार मूल्य में उतार-चढ़ाव से संबंधित जोखिमों को प्रबंधित करने के लिए किया जाता है। इसलिए, स्वैप के दो प्रमुख प्रकार हैं – ब्याज दर स्वैप और मुद्रा स्वैप।

ब्याज दर स्वैप (Interest Rate Swap)

  • ब्याज दर स्वैप (IRS) एक विशिष्ट प्रकार का स्वैप समझौता है जिसका उपयोग ब्याज दरों के आधार पर नकदी प्रवाह (Cash Flows) का आदान-प्रदान करने के लिए किया जाता है।
  • इनमें केवल उसी मुद्रा में पक्षों के बीच ब्याज दरों से संबंधित नकदी प्रवाह का आदान-प्रदान शामिल होता है, जो कि निश्चित या अस्थायी ब्याज दर का कारण हो सकता है।
  • इनका प्रयोग आम तौर पर ब्याज दरों में उतार-चढ़ाव से संबंधित जोखिमों को प्रबंधित करने के लिए किया जाता है।

मुद्रा स्वैप (Currency Swaps)

  • मुद्रा स्वैप एक प्रकार का स्वैप समझौता होता है जहां दो पक्ष विभिन्न मुद्राओं में नकदी प्रवाह का आदान-प्रदान करते हैं।
  • इनमें दोनों दिशाओं में नकदी प्रवाह के साथ मूलधन और ब्याज दोनों का आदान-प्रदान शामिल होता है, जो विपरीत दिशा में नकदी प्रवाह से अलग मुद्रा में होता है।
  • इनका उपयोग आम तौर पर किसी मुद्रा के बाजार मूल्य में परिवर्तन से संबंधित जोखिमों को प्रबंधित करने के लिए किया जाता है।
  • मुद्रा डेरिवेटिव्स विक्रेता और क्रेता के बीच एक अनुबंध होता है, जिसका मूल्य बाजार में मुद्रा मूल्य या मुद्रा विनिमय दर से प्राप्त होता है।
  • इसमें यह शामिल होता है कि दो मुद्रों का भविष्य की तिथि पर एक निर्धारित विनिमय दर पर आदान-प्रदान किया जा सकता है, भले ही विनिमय के दिन प्रचलित विनिमय दर कुछ भी हो।
  • म्यूचुअल फंड निवेशकों से धन एकत्रित करते हैं और उनकी ओर से स्टॉक, बॉन्ड और अन्य प्रतिभूतियों में पैसा निवेश करते हैं।
  • इस प्रकार, म्यूचुअल फंड मूल रूप से मध्यस्थ होते हैं, जो लोगों के एक समूह को एक साथ लाते हैं और उनके धन का निवेश करते हैं।
  • म्यूचुअल फंड में अपना धन देने वाले प्रत्येक निवेशक म्यूचुअल फंड में शेयरों के मालिक होते हैं, जो फंड की होल्डिंग्स के एक हिस्से का प्रतिनिधित्व करते हैं।
  • म्यूचुअल फंड के प्रबंधक निवेशकों से उनकी ओर से फंड के प्रबंधन के लिए एक छोटा सा शुल्क लेते हैं।
  • म्यूचुअल फंडों को मुख्य रूप से तीन श्रेणियों में वर्गीकृत किया जा सकता है, जिसके आधार पर वे परिसंपत्ति वर्गों में निवेश करते हैं।

इक्विटी म्यूचुअल फंड मुख्य रूप से शेयरों और इक्विटी-उन्मुख साधनों में निवेश करते हैं, जैसे कि सूचीबद्ध कंपनियों के शेयर।

ऋण म्यूचुअल फंड सरकारी प्रतिभूतियों, कॉर्पोरेट बॉन्ड, ट्रेजरी बिल, मनी मार्केट इंस्ट्रूमेंट्स आदि जैसे निश्चित आय वाले उपकरणों में निवेश करते हैं।

ये ऐसे म्यूचुअल फंड होते हैं जो एक से अधिक प्रकार के परिसंपत्ति वर्गों में निवेश करते हैं, जिनमें इक्विटी के साथ-साथ ऋण (Debt ) भी शामिल है।

  • एक्सचेंज ट्रेडेड फंड (ETF) विपणन योग्य प्रतिभूतियों का एक समूह है जो किसी सूचकांक, वस्तु, बॉन्ड या परिसंपत्तियों के समूह को ट्रैक करते हैं, जैसे कि एक इंडेक्स फंड।
  • एक्सचेंज ट्रेडेड फंड (ETF) म्यूचुअल फंड और स्टॉक दोनों की विशेषताओं का संयोजन है।
    • म्यूचुअल फंड की तरह, एक ईटीएफ में अंतर्निहित निवेशों का एक संग्रह होता है, जो स्टॉक, बॉन्ड, कमोडिटी या इनके संयोजन हो सकते हैं।
    • स्टॉक और म्यूचुअल फंडों के विपरीत, ईटीएफ का एक्सचेंज पर कारोबार किया जाता है और पूरे दिन मूल्य में परिवर्तन का अनुभव होता है क्योंकि उन्हें खरीदा और बेचा जाता है।
मानक (Parameters)म्यूचुअल फंडएक्सचेंज ट्रेडेड फंड (ETF)
अर्थएक निवेश फंड जहां कई निवेशक अपने धन को एक साथ मिलाकर विविध प्रतिभूतियों में निवेश करते हैं।सूचकांक फंड, जो सूचकांक को ट्रैक करता है और वित्तीय बाजार में सूचीबद्ध और कारोबार किया जाता है।
होल्डिंग्स की गणनाहोल्डिंग्स की गणना तिमाही आधार पर किया जाता है।होल्डिंग्स की गणना  दैनिक आधार पर किया जाता है।
व्यय अनुपात की  गणनाम्यूचुअल फंड का औसत व्यय अनुपात एक ईटीएफ से अधिक होता है।ईटीएफ का औसत व्यय अनुपात म्यूचुअल फंड से कम होता है।
व्यापारिक बाजार (Trading Market)म्यूचुअल फंड में, शेयरों की खरीद और बिक्री फंड हाउस से होती है।इसके विपरीत, ईटीएफ में द्वितीयक बाजार में दो निवेशकों के बीच व्यापार किया जाता है।
व्यापारिक मूल्य (Trade Price)फंडों का कारोबार शुद्ध परिसंपत्ति मूल्य (NAV) पर किया जाता है।ईटीएफ का कारोबार उनके शुद्ध परिसंपत्ति मूल्य के बजाय उद्धृत मूल्य (Quoted Price) पर किया जाता है।
कर दक्षता (Tax Efficiency)म्यूचुअल फंडों को एक्सचेंज ट्रेडेड फंडों की तुलना में कम कर-कुशल माना जाता है।एक्सचेंज ट्रेडेड फंडों को म्यूचुअल फंडों की तुलना में अधिक कर-कुशल माना जाता है क्योंकि उनके निरंतर कारोबार के कारण पूँजी गत लाभ कर अधिक होता है।
शेयर ट्रेडिंग खाते की आवश्यकता म्यूचुअल फंड में,म्यूचुअल फंड खरीदने के लिए शेयर ट्रेडिंग खाते की आवश्यकता नहीं होती है।चूंकि ईटीएफ का कारोबार शेयर बाजार में किया जाता है, इसलिए लेनदेन को आगे बढ़ाने के लिए शेयर ट्रेडिंग खाते की आवश्यकता होती है।
ब्रोकरेज (Brokerage)म्यूचुअल फंडों में ब्रोकरेज का भुगतान नहीं किया जाता है।ईटीएफ में ब्रोकरेज का भुगतान किया जाता है।
आंशिक शेयर (Fractional Shares)म्युचुअल फंड एक अंश (fraction) में जारी किए जा सकते हैं।ईटीएफ को विभिन्न अंशों (fraction) में नहीं बेचा जा सकता।
प्रबंधनम्यूचुअल फंड को फंड प्रबंधकों द्वारा सक्रिय रूप से प्रबंधित किया जाता है, अर्थात् बाजार से बेहतर प्रदर्शन करने के लिए संपत्तियाँ लगातार खरीदी और बेची जाती हैं।ईटीएफ फंडों में निष्क्रिय प्रबंधन होता है क्योंकि वे एक विशिष्ट सूचकांक से समानता रखते हैं।
  • सोना ईटीएफ एक गोल्ड एक्सचेंज ट्रेडेड फंड होता है।
  • यह एक प्रकार का कमोडिटी ईटीएफ है, जिसमें केवल सोना जैसी एक ही मुख्य संपत्ति होती है।
  • आम तौर पर, गोल्ड ईटीएफ की एक यूनिट एक ग्राम सोने के बराबर होती है।
  • इनका कारोबार शेयर बाजार में किया जाता है, बिल्कुल उसी तरह से जैसे आम शेयरों का किया जाता है।
  • भारत 22 ईटीएफ (Bharat-22 ETF) एक ऐसा एक्सचेंज ट्रेडेड फंड (ETF) है जिसमें 22 स्टॉक शामिल हैं। इन स्टॉक्स में केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम (CPSEs), सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक (PSBs) और भारतीय यूनिट ट्रस्ट ऑफ इंडिया के अंतर्गत आने वाले उपक्रम शामिल हैं।
  • दूसरे शब्दों में, भारत 22 ईटीएफ सीपीएसई ईटीएफ की तुलना में अधिक विविध है। यह छह क्षेत्रों में फैला हुआ है –
    • आधारभूत सामग्री (4.4%)
    • ऊर्जा (17.5%)
    • वित्त (20.3%)
    • उपभोक्ता सामान (FMCG) (15.2%)
    • उद्योग (22.6%)
    • उपयोगिता क्षेत्र (20%)

विदेशी पूँजी को भारत में आकर्षित करने के लिए विभिन्न प्रकार के पूँजी बाजार उपकरण (Capital Market Instruments) मौजूद हैं। पूँजी बाजार में विदेशी निवेश के प्रमुख उपकरणों पर नीचे चर्चा की गई है।

  • डिपॉजिटरी रसीदें (Depository Receipt – DR) एक वित्तीय उपकरण है जो किसी विदेशी क्षेत्राधिकार में किसी कंपनी/संस्था द्वारा जारी की गई कुछ प्रतिभूतियों (Securities) जैसे शेयरों, बॉन्डों आदि का प्रतिनिधित्व करते हैं।
  • किसी फर्म की प्रतिभूतियों को फर्म के घरेलू क्षेत्राधिकार में एक घरेलू संरक्षक (Domestic Custodian) के पास जमा किया जाता है, और विदेश में एक समान “जमापूँजी रसीद” जारी की जाती है, जिसे विदेशी निवेशक खरीद सकते हैं।
  • डिपॉजिटरी रसीदें एक महत्त्वपूर्ण प्रणाली का निर्माण करते हैं जिसके माध्यम से जारीकर्ता अपने घरेलू क्षेत्राधिकार के बाहर से धन एकत्रित कर सकते हैं।
  • इस प्रकार, ये विदेशी निवेशकों को आकर्षित करने में सक्षम बनाते हैं जो अन्यथा सीधे घरेलू बाजार में भाग नहीं ले पाते।
  • निर्गम के स्थान ( Location of Issue) के आधार पर, डिपॉजिटरी रसीदें (DRs) दो प्रकार की होती हैं – अमेरिकी डिपॉजिटरी रसीदें (American Depository Receipts – ADRs) और वैश्विक डिपॉजिटरी रसीदें(Global Depository Receipts – GDRs)।

अमेरिकी डिपॉजिटरी रसीदें (American Depository Receipts – ADRs)

  • ADRs एक अमेरिकी बैंक द्वारा जारी किए जाते हैं, जो एक संरक्षक के रूप में कार्य करते हैं, जो एक गैर-अमेरिकी कंपनी के शेयरों का प्रतिनिधित्व करते हैं।
  • ये यूएसए एक्सचेंज पर गैर-यूएसए शेयरों के कारोबार का एक माध्यम प्रदान करते हैं।
  • उदाहरण के लिए, यदि कोई भारतीय कंपनी अमेरिकी बाजार से धन एकत्रित करना चाहती है, तो वह अपने शेयर किसी अमेरिकी बैंक को दे देती है। उन शेयरों के बदले में, अमेरिकी बैंक भारतीय कंपनी को रसीदें प्रदान करता है। फिर कंपनी अमेरिकी शेयर बाजार में उन ADR रसीदों को प्रदान करके धन जुटाती है।

वैश्विक डिपॉजिटरी रसीदें (Global Depository Receipts – GDRs)

  • ये ADR के समान हैं, लेकिन संयुक्त राज्य के बाहर जमा बैंक द्वारा जारी किए जाते हैं।
  • इन्हें विश्वभर के स्टॉक एक्सचेंजों पर विभिन्न मुद्राओं में कारोबार किया जा सकता है, जो जमा बैंक के स्थान के आधार पर निर्भर करता है।
  • इन्हें विदेशी कंपनी की घरेलू मुद्रा, अमरीकी डॉलर (USD), या डिपॉजिटरी बैंक के स्थान की मुद्रा में दर्शाया जा सकता है।
  • विदेशी मुद्रा परिवर्तनीय बॉन्ड (FCCB) एक विशेष प्रकार का परिवर्तनीय बॉन्ड होता है, जो जारीकर्ता की घरेलू मुद्रा से अलग किसी विदेशी मुद्रा में जारी किया जाता है।
  • यहां ‘विदेशी मुद्रा’ शब्द का अर्थ है कि जारीकर्ता कंपनी द्वारा जुटाया जा रहा धन विदेशी मुद्रा के रूप में होता है।
  • यहां ‘परिवर्तनीय’ शब्द का अर्थ है कि, यह मूल रूप से एक बॉन्ड होता है, लेकिन बॉन्ड धारक को बॉन्ड की अवधि के दौरान विशिष्ट समय पर इसे जारीकर्ता के पूर्व निर्धारित संख्या में शेयरों में बदलने का विकल्प प्रदान करता है।
  • पार्टिसिपेटरी नोट्स (P-Notes) या P-Notes या PN विदेशी वित्तीय उपकरण हैं जिनका उपयोग विदेशी निवेशक भारतीय प्रतिभूतियों में निवेश करने के लिए करते हैं, जो भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI) के साथ पंजीकृत नहीं हैं।
  • विदेशी संस्थागत निवेशक (FII) या डीलर, जो SEBI के साथ पंजीकृत हैं, विदेशी स्टॉक बाजार में निवेश करने के इच्छुक विदेशी निवेशकों को P-Notes जारी करते हैं।
  • P-Notes उन विदेशी निवेशकों को अनुमति प्रदान करते हैं जो भारतीय शेयर बाजार में निवेश करना चाहते हैं, उन्हें SEBI के साथ स्वयं को पंजीकृत करने और जांच एवं KYC मानदंडों की परेशानी से गुजरने की आवश्यकता नहीं होती है।
    • इस प्रकार, P-Notes विदेशी निवेशकों को गुमनाम रहते हुए भारतीय बाजार में निवेश करने की अनुमति देते हैं।
    • यही कारण है कि P-Notes FII के बीच काफी लोकप्रिय हैं।
  • P-Notes की गुमनाम प्रकृति का अर्थ है कि निवेशक भारतीय नियामकों की पहुंच से बाहर रहते हैं।
    • इससे इन P-Notes के दुरुपयोग की आशंका है, जिन्हें धन शोधन के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है।

संक्षेप में, पूँजी बाजार के उपकरण विविध हैं, प्रत्येक विभिन्न प्रकार के निवेशकों और जारीकर्ताओं के लिए विशिष्ट उद्देश्यों की पूर्ति करते हैं। पूँजी बाजार के साथ-साथ वित्तीय प्रणाली की गतिशीलता को समझने के लिए इन पूँजी बाजार उपकरणों को समझना महत्त्वपूर्ण है। जैसे-जैसे वैश्विक वित्तीय बाज़ार विकसित हो रहे हैं, ये उपकरण आर्थिक स्थिरता सुनिश्चित करने और विकास को बढ़ावा देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

सामान्य अध्ययन-3
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