Skip to main content
भारतीय समाज 

भारत में जनजातियाँ: संवैधानिक प्रावधान, मुद्दे और आगे की राह

Posted on November 3, 2023 by  17831

आदिवासी एक शब्द है जिसका प्रयोग भारत में जनजातियाँ का वर्णन करने के लिये किया जाता है। ऐसा माना जाता है कि भारत में जनजातियाँ द्रविड़ और इंडो-आर्यन से पहले भारत की मूल जाति थी। आदिवासी से तात्पर्य विभिन्न जातीय समूहों से है जो भारतीय उपमहाद्वीप के प्राचीन निवासी माने जाते हैं। हालाँकि, यह ध्यान रखना आवश्यक है कि भारत में जनजाति और आदिवासी के अलग-अलग अर्थ हैं। जनजाति एक सामाजिक इकाई को संदर्भित करता है, जबकि आदिवासी स्पष्ट रूप से भूमि के प्राचीन निवासियों को संदर्भित करता है।

भारत में जनजातियाँ समुदायों से संबंधित संवैधानिक प्रावधान

भारतीय संविधान सभी नागरिकों को यह गारंटी प्रदान करता है कि किसी भी नागरिक के साथ भेदभाव नहीं किया जाएगा। संविधान में कुछ विशिष्ट प्रावधान हैं जो अनुसूचित जनजातियों (ST) के अधिकारों एवं कल्याण से सम्बंधित है:

सेवा सुरक्षा उपाय

  • अनुच्छेद 16(4) राज्यों को पर्याप्त प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने के लिए किसी भी पिछड़े वर्ग के लिए नियुक्तियों या पदों में आरक्षण का प्रावधान करने का अधिकार प्रदान करता है।
  • अनुच्छेद 16(4 ए) राज्यों को एससी/एसटी के लिए पदोन्नति में आरक्षण के प्रावधान करने की अनुमति देता है यदि उन्हें राज्य के तहत सेवाओं में पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं है।
  • अनुच्छेद 16(4 बी) स्पष्ट करता है कि 50 प्रतिशत आरक्षण की सीमा निर्धारित करने के लिए बैकलॉग रिक्तियों को चालू वर्ष की रिक्तियों के साथ नहीं माना जाएगा।

आर्थिक अधिकार

  • अनुच्छेद 244(1) छठी अनुसूची के अंतर्गत आने वाले असम, मेघालय, मिजोरम और त्रिपुरा के अतिरिक्त अन्य राज्यों में अनुसूचित क्षेत्रों और अनुसूचित भारत में जनजाति के प्रशासन और नियंत्रण के लिए पांचवीं अनुसूची के प्रावधानों को लागू करता है।
  • अनुच्छेद 275 पांचवीं और छठी अनुसूची के अंतर्गत निर्दिष्ट राज्यों (एसटी और एससी) को सहायता अनुदान का प्रावधान करता है।

सामाजिक अधिकार

  • अनुच्छेद 23 बंधुआ मजदूरी को समाप्त करने से सम्बंधित है और तथा मानव तस्करी और जबरन श्रम को प्रतिबंधित करता है। इस प्रावधान का उल्लंघन दंडनीय अपराध है।
  • अनुच्छेद 24 बाल श्रम को प्रतिबंधित करता है, 14 वर्ष से कम आयु के बच्चों को कारखानों, खदानों या खतरनाक गतिविधियों में काम करने से प्रतिबंधित करता है।

शैक्षिक और सांस्कृतिक अधिकार

  • अनुच्छेद 15(4) अनुसूचित जनजातियों की शैक्षिक उन्नति के लिए विशेष प्रावधानों को सुनिश्चित करता है।
  • अनुच्छेद 46 राज्य को अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के शैक्षिक और आर्थिक हितों को बढ़ावा देने और उन्हें सामाजिक अन्याय एवं सभी प्रकार के शोषण से संरक्षित करने का निर्देश देता है।
  • अनुच्छेद 350 विशिष्ट भाषाओं, लिपियों या संस्कृतियों के संरक्षण के अधिकारों का प्रावधान करता है।

भारत में अनुसूचित जनजाति समुदाय के समक्ष चुनौतियाँ

भारत में जनजातियाँ समुदाय के द्वारा निम्नलिखित चुनौतियों का सामना किया जा रहा हैं, ये चुनौतियाँ उनके जीवन को कठिन बना रही हैं।

  • एक बड़ी समस्या उनके प्राकृतिक संसाधनों का दोहन है। सरकार की उदारीकरण एवं वैश्वीकरण की नीतियां आर्थिक विकास के लिए संसाधनों के उपयोग को प्राथमिकता देती हैं, जो संसाधनों के उपयोग के पारंपरिक आदिवासी दृष्टिकोण से टकराती है। भारत में जनजाति क्षेत्रों से संसाधनों का दोहन हुआ है, जिससे पारिस्थितिकी तंत्र भी क्षति हुई है।
  • एक अन्य मुद्दा बड़ी विकास परियोजनाओं के कारण जबरन विस्थापन है। इन परियोजनाओं के लिए कई आदिवासी क्षेत्रों से जनसंख्या को विस्थापित करना पड़ा हैं। इन विस्थापित समुदायों को प्राय: उचित पुनर्वास प्राप्त करने के लिए संघर्ष करना पड़ा हैं।
  • विभिन्न आदिवासी समुदायों को विभिन्न समस्याओं का सामना करना पड़ता है। उदाहरण के लिए कुछ लोग खराब स्वास्थ्य बिमारियों से पीड़ित हैं, उनकी जीवन प्रत्याशा कम है और सिकल सेल एनीमिया जैसी बीमारियों की दर अधिक है। प्राकृतिक संसाधनों तक पहुंच और क्षेत्रीय नियंत्रण को लेकर भी जनजातियों के बीच संघर्ष होते हैं।
  • जनजातीय लोगों के कल्याण और सुरक्षा पर बाजार ताकतों के हितों को प्राय: प्राथमिकता दी जाती है। भारत में जनजातियाँ बेरोजगार हो रही है या शोषणकारी और कम वेतन वाली नौकरियों में कार्य करने के लिए मजबूर हैं।
  • वैश्वीकरण ने स्थिति को और निराशाजनक कर दिया है। इसने दलित जनजातियों के लिए सामाजिक बहिष्कार और असुरक्षा को बढ़ा दिया है तथा इसने जनजातीय क्षेत्रों के लिए अधिक स्वायत्तता या मान्यता की माँग करने वाले उप-राष्ट्रीय आंदोलनों को भी जन्म दिया है।
  • आदिवासी महिलाएं विशेष रूप से प्रभावित होती हैं क्योंकि वे प्राय: अपनी भूमि के कॉर्पोरेट शोषण से सीधे प्रभावित होती हैं। गरीबी के कारण जनजातीय क्षेत्रों से कई युवा महिलाएँ कार्य की तलाश में शहरी केंद्रों की ओर पलायन करती हैं, जहां उन्हें शोषण और खराब जीवन स्थितियों का सामना करना पड़ता है।
  • कुछ विकास परियोजनाओं तथा बाह्य लोगों के आवागमन ने भी आदिवासी संस्कृतियों और आवासों के लिए खतरे उत्पन्न किये है। भारत में कुछ पृथक एकाकी जनजातियाँ, जैसे सेंटिनलीज़, वाह्य लोगों के प्रति शत्रुतापूर्ण हैं और उन्हें हस्तक्षेप से सुरक्षित करने की आवश्यकता है।

आगे की राह

भारत में जनजाति की सुरक्षा और उनके अधिकारों एवं कल्याण की रक्षा के लिए कई उपायों और नीतियों को लागू करने की आवश्यकता है। यहाँ कुछ प्रमुख उपाय निम्नलिखित हैं :-

  • सामाजिक और सांस्कृतिक संरक्षण: आदिवासी समुदायों की अद्वितीय सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करने के लिए उपाय सुनिश्चित करना चाहिए। पारंपरिक प्रथाओं और शिल्पों को प्रोत्साहित करना चाहिए और उनके पवित्र स्थलों एवं सांस्कृतिक स्थानों को सरंक्षित करना चाहिए।
  • सामुदायिक सशक्तिकरण: आदिवासी समुदायों को उनके जीवन और संसाधनों से संबंधित निर्णय लेने की प्रक्रियाओं में सम्मिलित कर सशक्त बनाना चाहिए। उनकी पारंपरिक शासन प्रणालियों और सांस्कृतिक संस्थानों को पहचान कर, उन्हें सरंक्षित करना चाहिए।
  • भूमि अधिकार: स्थानीय और राज्य सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि आदिवासी समुदायों के पास उनकी भूमि का स्पष्ट और निर्विवाद स्वामित्व हो। भूमि-हस्तांतरण से सम्बंधित मुद्दों का समाधान करना चाहिए और अवैध भूमि अधिग्रहणों के खिलाफ सख्त कार्रवायी करनी चाहिए।
  • जागरूकता और संवेदनशीलता: सरकारी अधिकारियों, कानून प्रवर्तन एजेंसियों और जन समान्य के बीच आदिवासी समुदायों के अधिकारों और मुद्दों के बारे में जागरूकता पैदा करना। इन समुदायों के सामने आने वाली विशिष्ट चुनौतियों के प्रति उन्हें संवेदनशील बनाना।
  • एकाकी जनजातियों की सुरक्षा: एकाकी जनजातियों और उनके आवासों की सुरक्षा के लिए आवश्यक सावधानी रखनी चाहिए। उनके जीवन में किसी भी हानिकारक हस्तक्षेप को रोकने के लिए “आँखें रखो, हाथ हटाओ” (“Eyes on, Hands off”) नीति को सख्ती से लागू करना चाहिए।
  • कानूनी संरक्षण: वन अधिकार अधिनियम के कार्यान्वयन को प्राथमिकता दी जानी चाहिए, जो आदिवासी समुदायों के उनकी पारंपरिक भूमि पर अधिकारों को मान्यता के साथ-साथ सुरक्षा भी प्रदान करता है।
  • समावेशी विकास: यह सुनिश्चित करना चाहिए कि आदिवासी क्षेत्रों में विकास परियोजनाएँ  स्थानीय समुदायों की पूर्ण सहमति और भागीदारी के पश्चात् ही प्रारम्भ की जानी चाहिए।परियोजनाओं का उद्देश्य विस्थापन और शोषण के स्थान परजनजातीय आजीविका का उत्थान और उनकी संस्कृति को संरक्षित करना होना चाहिए।
  • पुनर्वास और मुआवजा: विकास परियोजनाओं से प्रभावित आदिवासी समुदायों का उचित पुनर्वास और मुआवजा देना चाहिए। सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि विस्थापित जनजातियों को उचित मुआवजा, पर्याप्त आवास और स्थायी आजीविका के अवसर प्राप्त हों।
  • शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा: आदिवासी क्षेत्रों में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच में सुधार करना। स्कूलों और स्वास्थ्य देखभाल केंद्रों के निर्माण और बुनियादी ढांचे में सुधार से आदिवासी समुदायों की कल्याण और भविष्य की संभावनाओं को बढ़ाने में मदद मिलेगी।
  • रोजगार के अवसर: आदिवासी क्षेत्रों में कौशल विकास और रोजगार के अवसरों को बढ़ावा देना। इससे शोषणकारी श्रम बाजारों पर निर्भरता कम होगी और स्थायी आजीविका के विकल्प उपलब्ध होंगे।

निष्कर्ष

जनजातियाँ भारतीय जनसंख्या का एक महत्वपूर्ण भाग है। वे कुल जनसंख्या का लगभग 8.6% हैं। भारत में उन्हें कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। उपर्युक्त उपायों को लागू करके और आदिवासी कल्याण के लिए एक व्यापक दृष्टिकोण को बढ़ावा देकर, भारत अपने आदिवासी समुदायों के अधिकारों की रक्षा और समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करने की दिशा में कार्य कर सकता है।

ऐसे वातावरण को बढ़ावा देना आवश्यक है जहां आदिवासी समुदाय स्वयं को सरंक्षित महसूस करें और देश के अन्य नागरिकों के समान अवसरों एवं अधिकारों का लाभ उठा सकें।

सामान्य प्रश्नोत्तर (FAQs)

भारत में जनजातियों के लिए कौन कौन से अनुच्छेद है?

भारतीय संविधान में जनजातियों से संबंधित अनुच्छेदों में 15(4) शामिल है, जो उनकी शैक्षिणिक प्रगति के लिए विशेष प्रावधान करता है, अनुच्छेद 46, जो राज्य को उनके शैक्षिक और आर्थिक हितों को बढ़ावा देने का निर्देश देता है, और अनुच्छेद 244(1) जो पांचवीं अनुसूची को अनुसूचित क्षेत्रों और अनुसूचित जनजातियों के लिए लागू करने का प्रावधान करता है।

अनुच्छेद 341 और 342 क्या है?

अनुच्छेद 341 और अनुच्छेद 342 क्रमशः अनुसूचित जाति (एससी) और की अनुसूचित जनजाति (एसटी) पहचान का प्रावधान करता है। ये अनुच्छेद संविधान के अंतर्गत विशेष सुरक्षा और लाभ के लिए पात्र विशिष्ट जातियों और जनजातियों को सूचीबद्ध करते हैं।

भारत के संविधान का अनुच्छेद 330 क्या है?

संविधान का अनुच्छेद 330 लोक सभा में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजातियों के लिए सीटो के आरक्षण का प्रावधान करता है।

भारत में जनजाति किसे कहा जाता है?

भारत में जनजातियाँ स्वदेशी समुदाय हैं जिनकी अपनी विशिष्ट सांस्कृतिक, सामाजिक और आर्थिक विशेषताएँ है। वे विशिष्ट क्षेत्रों में निवास करती है और अपनी विशिष्ट परंपराओं, रीति-रिवाजों और भाषाओं को सरंक्षित किये हुए हैं।

भारत की जनजाति व्यवस्था क्या है?

भारत में जनजाति व्यवस्था स्वदेशी समुदायों की सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक संरचना को संदर्भित करती है। इसमें जनजातीय शासन, प्रथागत रीती-रिवाज़, पारंपरिक व्यवसाय और घनिष्ठ सामुदायिक सम्बन्ध आदि शामिल हैं।

सामान्य अध्ययन-1
  • Other Posts