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पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी 

भूजल निष्कर्षण: कारण, प्रभाव और समाधान

Posted on October 31, 2023 by  8402

भूजल निष्कर्षण धरातल में भंडारित जल को बाहर निकालने की प्रक्रिया है। भूमिगत जल मानवता के अस्तित्व के लिए आवश्यक है। भूमिगत जल जीवित रहने, फसल उगाने, मशीनरी का उपयोग करने और जीवन को आरामदायक बनाने के लिए आवश्यक है। मानव को वर्षा और धरातलीय सतह से प्राप्त होने वाले जल की तुलना में अधिक स्वच्छ और शुद्ध जल की आवश्यकता होती है, इसलिए मनुष्य भूजल पर बहुत अधिक निर्भर है।

भूजल में परिवर्तित होने के लिए जल को एक प्राकृतिक प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है। महासागरों, झीलों और नदियों जैसी सतह का जल सूर्य द्वारा गर्म होकर वाष्प में परिवर्तित हो जाता है। यह वाष्प फिर वर्षा या बर्फ के रूप में परवर्तित हो जाती है, जो आकाश से बूंदों के रूप में गिरती है। जब जल बूदों के रूप में भूमि पर गिरता है, तो यह पृथ्वी के अंदर रिस कर चला जाता है और भूमिगत जल के रूप में विशेष क्षेत्रों में जमा हो जाता है, जिसे जलभृत (एक्वीफर) कहा जाता है।

भूजल निष्कर्षण से संबंधित तथ्य एवं आँकड़े

भारत विश्व के किसी भी अन्य देश की तुलना में सबसे अधिक भूजल निष्कर्षण का उपयोग करता है। प्रत्येक वर्ष भारतीय, भारी मात्रा में भूजल को निष्कर्षित करते हैं, लगभग 253 बिलियन क्यूबिक मीटर। यह विश्व भर में निकाले गए सभी भूजल का लगभग 25% है।

भारत में भूजल निष्कर्षण की स्थिति का आँकलन करने के लिए विभिन्न श्रेणियाँ है।

  • कुल 6,584 मूल्याँकन इकाइयों में से 1,034 को “अत्यधिक दोहनित” माना जाता है, जिसका अर्थ है कि वे भूजल का उपयोग अस्थिर दर से कर रहे हैं।
  • अन्य 253 इकाइयों को “क्रिटिकल“, 681 को “सेमी-क्रिटिकल” और 4,520 को “सुरक्षित” के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
  • शेष 96 इकाइयों को “खारा जल” के रूप में चिन्हित किया गया है क्योंकि खारेपन के कारण उनमें ताजे भूजल तक पहुँच नहीं है।
  • भारत में जल की उपलब्धता की बात करें तो यहाँ लगभग 1,123 अरब घन मीटर जल संसाधन हैं।
  • जिसमे सतही जल का हिस्सा 690 अरब घन मीटर है, जबकि शेष 433 अरब घन मीटर भूजल है।
  • उपलब्ध सभी भूजल में से 90% का उपयोग कृषि में सिंचाई के लिए किया जाता है और शेष 10% का उपयोग घरेलू और औद्योगिक उद्देश्यों के लिए संयुक्त रूप से किया जाता है।

भारत में भूजल निष्कर्षण के कारण

भारत में भूजल के स्तर गिरने के कई कारण हैं:

  1. खपत की उच्च दर (High rate of consumption): भूजल को अपनी पुनर्भरण की तुलना में तेजी से निष्कर्षित किया जा रहा है। जैसे-जैसे विश्व की जनसंख्या बढ़ रही है और अधिक जल की आवश्यकता बढ़ने वाली है।
  2. समाप्त जलभृत (Exhausted Aquifers): जलभृत विशाल स्पंज की तरह होते हैं जो जल को अवशोषित और धारित करते हैं तथा हमें ताजा जल उपलब्ध कराने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। हालाँकि, वे केवल जल को धारण कर सकते हैं।
  3. जल की सीमित मात्रा और यदि जलभृत, पुनर्भरण की तुलना में तेजी से समाप्त हो रहें हैं, तो भारत को भविष्य में जल की समस्याओं का सामना करना पड़ सकता हैं।
  4. बड़ी आबादी और कृषि की जल-गहन प्रकृति (Large population and the water-intensive nature of farming): यह चिंता का विषय है कि भारत में अधिक भूजल शेष नहीं बचा है। पर्याप्त भूजल के बिना, विशेषकर सूखे के दौरान पीने, फसलों और पशुओ के लिए जल उपलब्ध कराना चुनौतीपूर्ण हो जाता है। कम उपलब्ध जल का अर्थ है, कम भोजन और सीमित आपूर्ति के साथ उच्च माँग की पूर्ति करना एक संघर्षपूर्ण होता हैं।
  5. प्राकृतिक कारक (Natural factors): जलवायु में परिवर्तन भी भूजल की कमी में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं इसके साथ ही मानवीय गतिविधियाँ भी भूजल की कमी के लिए प्राथमिक कारण हैं। जलवायु पैटर्न में बदलाव इस समस्या को और बढ़ा देते है और भूजल की कमी की प्रक्रिया को तीव्र कर देते है।
  6. इसलिए भारत में भूजल का अत्यधिक निष्कर्षण और कुप्रबंधन, प्राकृतिक कारकों के साथ मिलकर, भूजल निष्कर्षण का कारण बनता जा रहा है।

भूजल निष्कर्षण के प्रभाव

भूजल निष्कर्षण के कई महत्त्वपूर्ण प्रभाव हैं जिनमें शामिल हैं:

  • बढ़ी हुई लागत (Increased Cost): कम गहराई में कम जल संसाधन उपलब्ध होने से गहरे भंडारित जल तक पहुँचने के लिए वैकल्पिक तरीकों को विकसित करने में अधिक संसाधनों का निवेश करना पड़ रहा हैं।
  • भूजल की कमी के कारण झीलें, नदियाँ और समुद्र जैसे बड़े जल-निकाय उथले हो जाते हैं। जब भूजल की कमी होती है, तो जल का बहाव कम हो जाता है, जिसके परिणामस्वरूप समय के साथ जल स्तर कम हो जाता है। यह मछली और वन्य जीवन सहित पूरे पारिस्थितिकी तंत्र को प्रभावित करता है।
  • भूजल निष्कर्षण खारे पानी के प्रदूषण का कारण बन सकती है। चूँकि भूजल प्राय: बड़े जल निकायों से जुड़ा होता है। गहरा भूजल खारे पानी के साथ मिल जाता है, जिससे ऐसी स्थिति उत्पन्न हो जाती है जिसे खारे जल का प्रदूषण कहा जाता है।
  • बड़े जलभृतों (Aquifers) की कमी का खाद्य आपूर्ति और समुदायों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। कोलोराडो नदी जैसे उदाहरण दर्शाते हैं कि अर्थव्यवस्था और मानव-कल्याण के लिए महत्त्वपूर्ण होने के बावजूद, भूजल भंडार कितना कम हो रहा है।
  • भूजल की कमी जैव विविधता को सीमित करती है और खतरनाक सिंकहोल्स के निर्माण में योगदान करती है। उदाहरण के लिए, मैक्सिको की खाड़ी और मैक्सिको सिटी के पास के क्षेत्र भारी मात्रा में जलभृतों पर निर्भर है। औद्योगिक कृषि सामग्री के अपवाह के कारण जल का प्रदूषण मैक्सिको की खाड़ी क्षेत्र में वन्य जीवन, समुद्री-जीवों और कृषि को प्रभावित करती है।

भूजल निष्कर्षण के कुछ नकारात्मक प्रभावों में निम्न जल स्तर, अधिक गहराई से जल पंप करने की बढ़ी हुई लागत, सतही जल आपूर्ति में कमी, भूमि धंसाव और जल की गुणवत्ता के विषय में चिंताएँ, विशेष रूप से तटीय क्षेत्रों में खारे जल के घुसपैठ का खतरा आदि शामिल है।

अत्यधिक भूजल निष्कर्षण की समस्याओं का समाधान

अत्यधिक भूजल निष्कर्षण से निपटने के लिए निम्नलिखित समाधानों को लागू किया जा सकता हैं:

  1. व्यक्तिगत-केंद्रित संरक्षण (Individual-centric conservation): विलासितापूर्ण उद्देश्यों के लिए जल की खपत को कम करना चाहिए, जैसे कि सजावटी जल सुविधाएँ और स्विमिंग पूल में अनावश्यक जल का उपयोग। नल बंद करके, उपकरण के उपयोग को सीमित करके और घर पर फिजूलखर्ची से बचकर जल का संरक्षण किया जा सकता है, जिससे काफी मात्रा में जल को बचाया जा सकता है।
  2. उचित रासायनिक प्रबंधन (Proper chemical management): व्यवसायों और आवासीय क्षेत्रों से निकलने वाले रसायन प्राय: जल संसाधनों में पहुँच जाते हैं, जिससे जल के बड़े निकाय प्रदूषित हो जाते है। कम रसायनों का उपयोग कर और उनका उचित निपटान सुनिश्चित कर, हम विषाक्त पदार्थों को हमारे जल आपूर्ति को दूषित होने से रोक सकते हैं।
  3. अनुसंधान और वित्त पोषण में वृद्धि (Increased research and funding): एक व्यापक दृष्टिकोण जिसमें व्यक्तिगत और सरकारी दोनों प्रक्रियाएँ शामिल हैं। भूजल पंपिंग को नियंत्रित करने के लिए विशेष दिशानिर्देशों और प्रवर्तन के साथ सख्त नियमों को लागू करना चाहिए।
  4. वैकल्पिक जल स्रोतों की खोज (Exploring alternative water sources): वैकल्पिक तरीकों का उपयोग कर, हम भूजल पर निर्भरता को कम कर सकते हैं और जलभृतों(Aquifers) को प्राकृतिक रूप से पुन: भरने दे सकते हैं। यह दृष्टिकोण जल के उपयोग को कम करने वाली सतत विधियों और प्रौद्योगिकियों को विकसित करने का अवसर भी प्रदान करता है।
  5. भूजल पंपिंग का प्रभावी विनियमन (Effective regulation of groundwater pumping): भूजल निष्कर्षण को रोकने के लिए हमें भूजल संसाधनों की गहन समझ होना आवयश्क है। भारत सरकार को अनुसंधान और निगरानी प्रयासों के लिए पर्याप्त धन आवंटित करना चाहिए, जिससे हमें भूजल के दोहन की सीमाएँ निर्धारित करने और सतत विधियों को अपनाने के लिए प्रोत्साहन मिले जिससे भूजल के उपयोग को उत्तरदायित्व के साथ सुनिश्चित किया जा सकें।

निष्कर्ष

भूजल मानव के अस्तित्व का आधार है। भारतीय जनसँख्या का बहुत बड़ा भाग भूजल पर निर्भर है इसलिए निकट भविष्य में भारत को जल संकट का सामना करने का खतरा है। भारतीय आबादी के भविष्य की रक्षा के लिए, भारत को अपनी नीति में सुधार करने और जल-केंद्रित दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है।

उल्लिखित समाधानों को लागू कर हम सभी, भूजल निष्कर्षण को कम कर सकते है तथा वर्तमान और भविष्य की पीढ़ियों के लिए स्थायी और विश्वसनीय जल आपूर्ति सुनिश्चित करने की दिशा में कार्य कर सकते है।

सामान्य प्रश्नोत्तर

भूजल निष्कर्षण की क्या विधियाँ हैं?

भूजल निष्कर्षण की विधियाँ भूजल स्तर की गहराई और पहुँच के आधार पर भिन्न-भिन्न होती हैं। सामान्य विधियों में हैंड पंप, सबमर्सिबल पंप या गहरे ट्यूबवेल का उपयोग करके कुएँ खोदना शामिल है। अन्य तकनीकों में खुले खोदे गए कुएँ और फिल्टर वाले ट्यूबवेल आदि शामिल हैं।

निष्कर्षण, पारंपरिक विधियों जैसे बावड़ी या तालाबों के माध्यम से भी किया जा सकता है। प्रत्येक विधि के अपने लाभ और सीमाएँ है और इन विधियों का चयन जल उपलब्धता, लागत और स्थिरता जैसे कारकों पर निर्भर करता है।

भूजल निष्कर्षण क्यों किया जाता है?

भूजल निष्कर्षण मुख्य रूप से पेयजल आपूर्ति, कृषि के लिए सिंचाई और औद्योगिक उपयोग सहित विभिन्न मानवीय जरूरतों को पूरा करने के लिए किया जाता है। भूजल का उपयोग प्राय: मीठे जल के विश्वसनीय स्रोत के रूप में किया जाता है, विशेषकर उन क्षेत्रों में जहां सतही जल संसाधन सीमित हैं।

यह निरंतर जल आपूर्ति प्रदान करता है, शुष्क अवधि के दौरान कृषि गतिविधियों के लिए जरुरी होता है और जन-समुदायों के लिए स्वच्छ पेयजल तक पहुँच को सुनिश्चित करता है। हालाँकि, अत्यधिक भूजल निष्कर्षण से पर्यावरणीय समस्याएँ और जलभृतों का ह्रास हो सकता है।

भारत में भूजल का निष्कर्षण क्या है?

देश की बड़ी आबादी और विविध जल आवश्यकताओं के कारण भारत में भूजल निष्कर्षण महत्त्वपूर्ण है। यह कृषि की सिंचाई आवश्यकताओं को पूरा करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते है, जो भारतीय अर्थव्यवस्था का एक प्रमुख क्षेत्र है। भारत सिंचाई के लिए भूजल पर बहुत अधिक निर्भर है, लाखों ट्यूबवेल और खोदे गए कुएं जलभृतों से पानी निकालते हैं।

भूजल निष्कर्षण के प्रभाव क्या हैं?

भूजल दोहन के प्रभाव सकारात्मक और नकारात्मक दोनों हो सकते हैं। सकारात्मक प्रभावों में विभिन्न प्रयोजनों के लिए जल की मांग को पूरा करना, कृषि गतिविधियों को बढावा देने और मीठे जल का एक विश्वसनीय स्रोत प्रदान करना शामिल है। हालाँकि, अधिक निष्कर्षण के प्रतिकूल परिणाम हो सकते हैं।

भूजल भंडार के घटने से जल स्तर कम हो सकता है, पंपिंग लागत बढ़ सकती है, भूमि में धंसाव हो सकता है और पारिस्थितिक तंत्र और अन्य उपयोगकर्ताओं के लिए पानी की उपलब्धता कम हो सकती है। इससे तटीय क्षेत्रों में समुद्री जल का प्रवेश भी हो सकता है, जिससे मीठे पानी के संसाधनों की गुणवत्ता और उपयोगिता प्रभावित हो सकती है।

भूजल निष्कर्षण की प्रक्रिया क्या है?

जल-निष्कर्षण की प्रक्रिया में स्रोत के आधार पर विभिन्न चरण शामिल होते हैं। भूजल के लिए, इसमें सामान्यत: भूमिगत जलभृतों तक पहुँचने के लिए एक कुआं खोदना या एक ट्यूबवेल या पंप प्रणाली स्थापित करना शामिल होता है। कुएँ का निर्माण जमीन में ड्रिलिंग या खुदाई करके तब तक किया जाता है जब तक कि यह जल धारण करने वाली परत तक न पहुँच जाए।

फिर जल को सतह तक ऊपर लाने के लिए एक पंप या अन्य निष्कर्षण तंत्र का प्रयोग किया जाता है। दूसरी ओर, सतही भूजल निष्कर्षण में अंतर्ग्रहण संरचनाओं, पंपों और पाइपलाइनों का प्रयोग करके नदियों, झीलों या जलाशयों में जल एकत्रित करना शामिल है। यदि आवश्यक हो तो जल का उपचार किया जा सकता है एवं पाइप या नहरों के नेटवर्क के माध्यम से उपयोगकर्ताओं को वितरित किया जा सकता है।

सामान्य अध्ययन-3
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