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आपदा प्रबंधन 

भारत में आपदा प्रबंधन: प्रकार, चरण और पैमाने

Posted on September 30, 2023 by  51799

आपदा प्रबंधन में आपदा से बचाव के लिए तैयारी, आपदा के समय प्रतिक्रिया देने और बड़ी विफलताओं के परिणामों से सीखने की प्रक्रिया शामिल है। इसमें किसी आपदा के कारण होने वाले मानवीय, भौतिक, आर्थिक और पर्यावरणीय प्रभावों से निपटना शामिल है।

संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, आपदा एक व्यवधान को संदर्भित करती है जो किसी समुदाय या समाज के कामकाज में बाधा उत्पन्न करती है। आपदा से जनसमुदाय, संपत्ति, अर्थव्यवस्था और पर्यावरण पर व्यापक नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।

आपदा के प्रकार

आपदाएँ विभिन्न रूप ले सकती हैं और समुदायों को गंभीर रूप से बाधित कर सकती हैं, जिससे व्यक्तियों, संपत्ति, व्यवसायों और पर्यावरण पर नकारात्मक प्रभाव हो सकते हैं। वे प्राय: किसी जनसमुदाय की बचाव एवं सामना करने की क्षमता का परीक्षण करते हैं। मानवीय त्रुटियों से मानव-जनित आपदाओं में औद्योगिक विस्फोट या संरचनात्मक विफलताऐ जैसी घटनाएं शामिल हैं।

प्राकृतिक आपदाएँ भूकंप और सूखे जैसी भौतिक घटनाओं से उत्पन्न होती हैं। जटिल आपदाओं में महामारी या सशस्त्र संघर्ष भी शामिल हो सकते हैं।

आपदाओं को विभिन्न प्रकारों में विभाजित किया जा सकता है:

  • जल संबंधी आपदाएँ: इनमें बाढ़, ओलावृष्टि, बादल फटना, चक्रवात, गर्म पवनें, शीत लहरें, सूखा और तूफान शामिल हैं।
  • भूवैज्ञानिक आपदाएँ: इस श्रेणी में भूस्खलन, भूकंप, ज्वालामुखी विस्फोट और बवंडर शामिल हैं।
  • मानव निर्मित आपदाएँ: ये मानवीय गतिविधियों के कारण होने वाली आपदाएँ हैं, जैसे शहरी और जंगल की आग, तेल रिसाव और बड़ी संरचनाओं का ढहना।
  • जैविक आपदाएँ: इस प्रकार की आपदाओं में वायरल प्रकोप, कीटों का आक्रमण, पशुधन महामारी और टिड्डियों का प्रकोप आदि शामिल है।
  • औद्योगिक आपदाएँ: इनमें रासायनिक और औद्योगिक दुर्घटनाएँ, खनन खदान में आग और तेल रिसाव शामिल हैं।
  • परमाणु आपदाएँ: इस श्रेणी में परमाणु कोर का पिघलना और विकिरण से संबंधित जलन और बीमारियाँ शामिल हैं।

आपदा प्रबंधन के चरण:

यह आपात स्थिति से निपटने के लिए संसाधनों को व्यवस्थित और प्रबंधित करने के विषय में है। इसमें आपदाओं के प्रभाव को कम करने, आपात-स्थिति के लिए तैयार रहने और उससे उभरने के लिए प्रबंधन आदि शामिल है।

आपदा प्रबंधन का लक्ष्य खतरों को आपदा में बदलने से रोकना और जान-माल के नुकसान को कम करना है। इसमें आपदा से पूर्व, आपदा के समय और उसके आपदा के पश्चात् योजनाओं का निर्माण करना और कदम उठाना शामिल है। इसमें आपदाओं के लिए तैयारी करना, प्रभावी प्रतिक्रिया प्रणालियों को लागू करना और लचीले समुदायों का निर्माण करना शामिल है।

तीन मुख्य चरण:

  1. आपदा पूर्व प्रबंधन: यह चरण आपदा घटित होने से पहले कार्ययोजना बनाने पर केंद्रित है। इसका मुख्य उद्देश्य मानवीय क्षति को कम करना है। इसमें सूचना प्रणाली विकसित करना, संसाधन जुटाना, जोखिमों का आँकलन करना, विभिन्न संचार चैनलों के माध्यम से चेतावनी जारी करना और सुरक्षित स्थानों पर लोगों को पहुँचाने के लिए सुरक्षित परिवहन को सुनिश्चित करना आदि शामिल है।
  2. आपदाओं के दौरान प्रबंधन: यह चरण महत्वपूर्ण है और आपदा-पूर्व चरण में की गई तैयारियों पर निर्भर करता है। इसमें आपदा-ग्रस्त क्षेत्रों में पीड़ितों की सहायता के लिए त्वरित कार्रवाई करना, उन्हें सुरक्षित क्षेत्रों में स्थानांतरित करके उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करना और भोजन, कपड़े और स्वास्थ्य देखभाल जैसी आवश्यक ज़रूरतें प्रदान करवाना आदि शामिल है।
  3. आपदा पश्चात प्रबंधन: इस चरण में प्रभावित क्षेत्रों के पुनर्निर्माण और निर्माण पर ध्यान केंद्रित किया जाता है। प्रशासन प्रभावित लोगों को रोज़गार या मुआवज़ा सहित सहायता देने की कोशिश करता है।

भारत में आपदा प्रबंधन में अनेक एजेंसियाँ शामिल हैं:

  • राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (National Disaster Management Authority (NDMA): यह भारत में आपदा प्रबंधन के लिए शीर्ष निकाय है, जिसका नेतृत्व प्रधान मंत्री करते हैं। यह राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल (NDRF) का पर्यवेक्षण और नियंत्रण करते है।
  • राष्ट्रीय कार्यकारी समिति (National Executive Committee (NEC): इसमें भारत सरकार के उच्च-प्रोफ़ाइल मंत्री शामिल होते हैं। एनईसी आपदा प्रबंधन पर राष्ट्रीय नीति के अनुसार आपदा प्रबंधन के लिए राष्ट्रीय योजना को लागू करने का उत्तरदायित्व है।
  • राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (State Disaster Management Authority (SDMA): प्रत्येक राज्य का अपना एसडीएमए होता है, जिसकी अध्यक्षता मुख्यमंत्री करते हैं। राज्य स्तर पर आपदा प्रबंधन में सहायता के लिए एसडीएमए एक राज्य कार्यकारी समिति (एसईसी) के साथ कार्य करता है।
  • जिला आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (District Disaster Management Authority (DDMA): डीडीएमए का नेतृत्व जिला कलेक्टर या समकक्ष प्राधिकारी करता है और इसमें स्थानीय सरकार के निर्वाचित प्रतिनिधि शामिल होते हैं। इसकी भूमिका यह सुनिश्चित करना है कि एनडीएमए और एसडीएमए के दिशानिर्देशों का जिला स्तर पर लागू किया जाए।
  • स्थानीय प्राधिकरण (Local Authorities): स्थानीय प्राधिकरण जैसे कि पंचायती राज संस्थान, नगर पालिकाएं और नगर नियोजन प्राधिकरण, अपने-अपने क्षेत्रों में नागरिक सेवाओं को नियंत्रित और प्रबंधित करने के लिए उत्तरदायी हैं।

आपदाओं को रोकने अथवा कम करने के उपाय

आपदाओं की रोकथाम और शमन, आपदा-प्रबंधन की प्रक्रिया का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। इसके कुछ अन्य उपाय इस प्रकार हैं:

  • बुनियादी अवसरंचना की सुरक्षा (Critical Infrastructure Safety): सड़कों, बांधों, पुलों और बिजली स्टेशनों जैसे महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचे की नियमित जांच की जानी चाहिए ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि वे सुरक्षा मानकों को पूरा करते हैं और यदि आवश्यक हो तो उन्हें मजबूत किया जाना चाहिए।
  • पर्यावरणीय दृष्टि से सतत विकास (Environmentally Sustainable Development): सततता को सुनिश्चित करने के लिए पर्यावरणीय विचार और विकास संबंधी प्रयास, दोनों को ध्यान में रखना चाहिए।
  • जलवायु परिवर्तन अनुकूलन (Climate Change Adaptation): प्राकृतिक आपदाओं की बढ़ती आवृत्ति और तीव्रता सहित जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न चुनौतियों को उन रणनीतियों के माध्यम से संबोधित किया जाना चाहिए जो अनुकूलन और जोख़िम को न्यूनतम करने पर ध्यान केंद्रित करते हैं।
  • जोखिम मूल्यांकन और भेद्यता मानचित्रण (Risk Assessment and Vulnerability Mapping): उच्च जोखिम वाले क्षेत्रों की पहचान करने और उन्हें संबोधित करने के लिए रणनीति विकसित करने के लिए भौगोलिक सूचना प्रणाली (GIS) जैसे उपकरणों का उपयोग करके मानचित्रण और भेद्यता विश्लेषण किया जाना चाहिए।
  • शहरी नियोजन और विकास (Urban Planning and Development): अनियोजित शहरीकरण को रोकना और प्राकृतिक जल निकासी प्रणालियों को बनाए रखने पर ध्यान केंद्रित करने से शहरी क्षेत्रों में आपदाओं के प्रभाव को कम करने में सहायता मिल सकती है।

इन उपायों को लागू करके, भारत आपदाओं के लिए बेहतर ढंग से तैयारी कर सकता है और आपदाओं के प्रभावों को कम कर सकता  है ।

निष्कर्ष

आपदा प्रबंधन भारत के नीतिगत ढांचे में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है क्योंकि आपदाओं/आपदाओं के कारण निर्धन और वंचित लोग सबसे अधिक प्रभावित होते हैं।

आपदाएँ सामाजिक-आर्थिक विकास को अवरुद्ध करती हैं, इसके अतिरिक्त निर्धनों को और निर्धन बनाती हैं तथा दुर्लभ संसाधनों को विकास से पुनर्वास और पुनर्निर्माण की ओर ले जाती हैं। इन सभी कारकों के कारण भारत ने शमन और अनुकूलन संसाधनों में निवेश किया है।

सामान्य प्रश्नोत्तर

प्र.1. आपदा प्रबंधन का उद्देश्य क्या है?

आपदा प्रबंधन का उद्देश्य आपदाओं के प्रभाव को कम करना और जीवन, संपत्ति और बुनियादी ढांचे के नुकसान को न्यूनतम करना है।

यह समुदायों के लचीलेपन को बढ़ाने और आपात स्थिति के दौरान विभिन्न हितधारकों के बीच प्रभावी समन्वय सुनिश्चित करने के लिए तैयारी, प्रतिक्रिया, पुनर्प्राप्ति और शमन पर केंद्रित है।

प्र.2. भारत में आपदा प्रबंधन कैसे किया जाता है?
भारत में आपदाओं का प्रबंधन बहुस्तरीय दृष्टिकोण के माध्यम से किया जाता है। राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एनडीएमए) राष्ट्रीय स्तर पर नीतियां एवं  दिशानिर्देश तैयार करता है। राज्य-स्तरीय और जिला-स्तरीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण इन नीतियों को लागू करते हैं और आपदा प्रतिक्रिया प्रयासों का समन्वय करते हैं।

वे जोखिम मूल्यांकन करते हैं, आपदा प्रबंधन योजनाएं बनाते हैं, जागरूकता अभियान चलाते हैं, प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली स्थापित करते हैं और आपदाओं के दौरान बचाव और राहत कार्यों का समन्वय करते हैं।

प्र.3. भारत में आपदा प्रबंधन के विभिन्न प्रकार क्या हैं?
भारत में विभिन्न प्रकार के आपदा-प्रबंधन में प्राकृतिक और मानव निर्मित दोनों आपदाएँ शामिल हैं। प्राकृतिक आपदाओं में बाढ़, चक्रवात, भूकंप, सूखा, भूस्खलन और हिमस्खलन शामिल हैं।

मानव निर्मित आपदाओं में औद्योगिक दुर्घटनाएँ, रासायनिक रिसाव, परमाणु घटनाएँ, आतंकवादी हमले और मानवीय गतिविधियों से उत्पन्न होने वाली अन्य आपात स्थितियाँ शामिल हैं।

प्र.4. भारत में किस प्रकार की आपदा सबसे महत्वपूर्ण है?
भारत में सभी प्रकार की आपदाएँ महत्वपूर्ण हैं। बाढ़, चक्रवात और भूकंप जैसी प्राकृतिक आपदाएँ देश की भौगोलिक जनसंख्या घनत्व और जलवायु परिवर्तनशीलता के कारण पर्याप्त चुनौतियों को उत्पन्न करती हैं। इन आपदाओं से जान-माल की हानि, लोगों का विस्थापन, बुनियादी ढांचे को नुकसान और अर्थव्यवस्था में व्यवधान उत्पन्न होता है।

इन प्राकृतिक आपदाओं के प्रबंधन और न्यूनीकरण के प्रयासों से भारत में जीवन की रक्षा और समुदायों की दीर्घकालिक लचीलापन को सुनिश्चित किया जा सकता हैं।

सामान्य अध्ययन-3
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