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भारतीय राजव्यवस्था 

राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग (NCSC)

Posted on March 20, 2024 by  1713

राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग (NCSC), अनुसूचित जातियों के कल्याण और सशक्तिकरण को सुनिश्चित करने के लिए राष्ट्र की प्रतिबद्धता का प्रतीक है। इस आयोग को समानता और समावेशिता के संरक्षक के रूप में जाना जाता है, जो समाज के हाशिए पर रहने वाले तथा वंचित वर्गों के उत्थान के लिए समर्पित है। NEXT IAS के इस लेख का उद्देश्य राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग का विस्तार से अध्ययन करना है, जिसके अंतर्गत आयोग के विकास, गठन, कार्य, शक्तियाँ और अन्य संबंधित पहलूओं को समझाना हैं।

  • राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग (NCSC) एक संवैधानिक निकाय है।
  • इसकी स्थापना अनुसूचित जातियों को शोषण के विरुद्ध सुरक्षा उपाय प्रदान करने के साथ-साथ उनके सामाजिक, आर्थिक, शैक्षणिक और सांस्कृतिक हितों की रक्षा करने के लिए की गई है।
  • इसका मुख्यालय नई दिल्ली में है।
राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग (NCSC)
  • भारतीय संविधान के अनुच्छेद 366(24) के अनुसार, “अनुसूचित जाति” का तात्पर्य, ऐसी जातियों, समुदाय या जनजाति अथवा ऐसे जनजातियों के भाग या समूह से हैं जिन्हें अनुच्छेद 341 के अधीन इस संविधान के प्रयोजनों के लिए अनुसूचित जाति माना जाता है।”
  • भारतीय संविधान में अनुच्छेद 341(1) के अनुसार, “राष्ट्रपति किसी भी राज्य या केंद्र शासित प्रदेश के संबंध में, और जहाँ यह एक राज्य है, वहाँ राज्यपाल से परामर्श के बाद, सार्वजनिक अधिसूचना द्वारा, उन जातियों, समुदायों या जनजातियों को निर्दिष्ट कर सकता है जिन्हें संविधान के प्रयोजनों के लिए उस राज्य या केंद्र शासित प्रदेश के संबंध में, यथास्थिति, अनुसूचित जाति माना जाएगा।”
  • भारतीय संविधान के अनुच्छेद 341(2) के अनुसार, “संसद किसी भी जाति, समुदाय या जनजाति को उक्त खंड (1) के अधीन जारी अधिसूचना में विनिर्दिष्ट अनुसूचित जातियों की सूची में शामिल या उससे बाहर कर सकती है, लेकिन उक्त खंड के अधीन जारी अधिसूचना को किसी भी बाद की अधिसूचना द्वारा परिवर्तित नहीं किया जाएगा।”
  • 2011 की जनगणना के अनुसार:
    • अनुसूचित जातियाँ देश की जनसंख्या का 16.6% हैं।
    • अनुसूचित जातियों की सबसे अधिक संख्या उत्तर प्रदेश में पाई जाती है, उसके बाद पश्चिम बंगाल और तमिलनाडु का स्थान आता है।

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 338 राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग (NCSC) से संबंधित प्रावधानों से संबंधित है।

राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग (NCSC) अपने वर्तमान स्वरूप में, जैसा कि नीचे दिखाया गया है, घटनाक्रमों की एक श्रृंखला के माध्यम से विकसित हुआ है:

  • मूल रूप से, संविधान का अनुच्छेद 338 अनुसूचित जातियों (SC) और अनुसूचित जनजातियों (ST) के लिए एक विशेष अधिकारी की नियुक्ति का प्रावधान करता था।
  • विशेष अधिकारी को अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति आयुक्त के रूप में नामित किया गया था।
  • अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति आयुक्त का प्राथमिक कार्य अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए संवैधानिक सुरक्षा उपायों से संबंधित सभी मामलों की जांच करना और उनके कार्यों पर राष्ट्रपति को रिपोर्ट करना था।
  • इसने भारतीय संविधान के अनुच्छेद 338 में संशोधन किया तथा अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए एक उच्च-स्तरीय बहु-सदस्यीय राष्ट्रीय आयोग के गठन का प्रावधान किया।
  • इस संवैधानिक निकाय ने अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति आयुक्त का स्थान लिया।
  • इसने अनुच्छेद 338 में संशोधन किया तथा संविधान में एक नया अनुच्छेद 338-A को जोड़ा गया।
  • इस संशोधन के परिणामस्वरूप, राष्ट्रीय अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति आयोग को दो अलग-अलग निकायों में विभाजित किया गया:
    • राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग (NCSC) – अनुच्छेद 338
    • राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग (NCST) – अनुच्छेद 338-A

अनुसूचित जाति के लिए अलग राष्ट्रीय आयोग अंततः 2004 में स्थापित किया गया था।

  • इसमें एक अध्यक्ष, एक उपाध्यक्ष और तीन अन्य सदस्य होते हैं।
  • उन्हें राष्ट्रपति द्वारा उनके हस्ताक्षर और मुहर के पश्चात् नियुक्त किया जाता है।
  • उनकी सेवा शर्तें और पदावधि राष्ट्रपति द्वारा निर्धारित की जाती हैं।

राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग के अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और सदस्य (सेवा शर्तें और कार्यकाल) नियमावली 2004 के अनुसार:

  • राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग के अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और अन्य सदस्य उस तिथि से तीन वर्ष की अवधि के लिए पद धारण करेंगे जिस दिन से वह उस पद को ग्रहण करते है।
  • अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और अन्य सदस्य दो से अधिक कार्यकालों के लिए नियुक्ति के पात्र नहीं होंगे।

राष्ट्रीय अनुसूचितजाति आयोग के प्रमुख कार्यों में शामिल हैं:

  • अनुसूचित जातियों के लिए संवैधानिक और अन्य कानूनी सुरक्षा उपायों से संबंधित सभी मामलों की जाँच एवं निगरानी करना तथा उनके कार्यान्वयन का मूल्यांकन करना।
  • अनुसूचित जातियों के अधिकारों और सुरक्षा उपायों से वंचित किये जाने के संबंध में विशिष्ट शिकायतों की जाँच करना।
  • अनुसूचित जातियों के सामाजिक-आर्थिक विकास की योजना प्रक्रिया में भाग लेना और सलाह देना तथा केंद्र या राज्य के तहत उनके विकास की प्रगति का मूल्यांकन करना।
  • राष्ट्रपति को वार्षिक और ऐसे अन्य समय पर जैसा कि राष्ट्रपत उचित समझे, उन सुरक्षा उपायों के कार्यान्वयन पर रिपोर्ट प्रस्तुत करना।
  • केंद्र या राज्य द्वारा उन सुरक्षा उपायों के प्रभावी कार्यान्वयन और अनुसूचित जातियों के संरक्षण, कल्याण और सामाजिक-आर्थिक विकास के लिए अन्य उपायों के लिए किये जाने वाले उपायों के संबंध में सिफारिशें करना।
  • राष्ट्रपति द्वारा निर्दिष्ट किये जाने वाले अनुसूचित जातियों के संरक्षण, कल्याण, विकास और उन्नति से संबंधित ऐसे अन्य कार्यों का निर्वहन करना।
नोट:
आयोग को एंग्लो-इंडियन समुदाय के संबंध में भी इसी तरह के कार्य करने की आवश्यकता है, जैसा कि वह अनुसूचित जातियों (एससी) के संबंध में करता है।
2018 तक, आयोग को अन्य पिछड़ा वर्गों (ओबीसी) के संबंध में भी इसी तरह के कार्य करने की आवश्यकता थी। हालाँकि, 102वें संशोधन अधिनियम, 2018 के द्वारा राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग के गठन के पश्चात् इसे इस दायित्व से मुक्त कर दिया गया था।
  • आयोग को अपनी प्रक्रिया को विनियमित करने की शक्ति प्राप्त है।
  • किसी मामले या किसी शिकायत की जांच करते समय आयोग के पास सिविल कोर्ट की सभी शक्तियाँ होती हैं, अर्थात्
    • भारत के किसी भी भाग से किसी भी व्यक्ति को उपस्थित होने के लिए बुलाना और शपथ पर उससे पूछताछ करना,
    • जांच से संबंधित किसी भी दस्तावेज के लिए संबंधित अधिकारी को आदेश देना,
    • शपथ पत्रों पर साक्ष्य प्राप्त करना,
    • किसी भी न्यायालय या कार्यालय से किसी भी सार्वजनिक रिकॉर्ड की माँग करना,
    • गवाहों और दस्तावेजों की जाँच के लिए समन जारी करना,
    • कोई अन्य मामला जो राष्ट्रपति निर्धारित करते है।
  • केंद्र सरकार और राज्य सरकारों को अनुसूचित जातियों को प्रभावित करने वाले सभी प्रमुख नीतिगत मामलों पर आयोग से परामर्श करने की आवश्यकता है।
  • आयोग के द्वारा राष्ट्रपति को वार्षिक या ऐसे अन्य समय पर रिपोर्ट प्रस्तुत की जाती है जैसा वह उचित समझे।
  • आयोग की सिफारिशों पर की गई कार्रवाई के बारे में बताने वाले एक ज्ञापन के साथ सभी रिपोर्टों को राष्ट्रपति द्वारा संसद के समक्ष रखी जाती हैं।
    • ज्ञापन में ऐसी किसी भी सिफारिश को स्वीकार न करने के कारणों का भी उल्लेख होता है।
  • राष्ट्रपति किसी राज्य सरकार से संबंधित आयोग की रिपोर्ट को संबंधित राज्यपाल को भी प्रेषित करते है।
    • राज्यपाल इसे राज्य विधानमंडल के समक्ष प्रस्तुत करते है, साथ ही आयोग की सिफारिशों पर की गई कार्रवाई की व्याख्या करते हुए एक ज्ञापन भी दिया जाता है।
    • ज्ञापन में ऐसी किसी भी सिफारिश को स्वीकार न करने के कारणों का भी उल्लेख होता है।

निष्कर्षत: राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग (NCSC) वास्तव में भारत के समावेशी समाज के निरंतर प्रयास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। अधिकारों की प्रभावी सुरक्षा, विकास पहलों को बढ़ावा देने और नीतिगत बदलावों की वकालत करके आयोग के द्वारा अनुसूचित जातियों को सशक्त बनाया जाता है तथा अनुसूचित जातियों के बेहतर न्यायसंगत भविष्य का निर्माण कर सकता है। जैसे-जैसे भारत समावेशी विकास और सामाजिक न्याय की ओर अग्रसर होता है, वैसे-वैसे NCSC एक महत्त्वपूर्ण संस्था बनकर उभर रहीं है।

अनुच्छेद 15: यह अनुच्छेद जाति आधारित भेदभाव के मुद्दे को संबोधित करता है, तथा विभिन्न क्षेत्रों में अनुसूचित जातियों (SC) खिलाफ भेदभाव को प्रतिबंधित करता है एवं उनके संरक्षण और उत्थान को सुनिश्चित करता है।

अनुच्छेद 17: यह अनुच्छेद अस्पृश्यता को समाप्त करता है और किसी भी रूप में इसके अभ्यास को प्रतिबंधित करता है। इसका उद्देश्य सामाजिक भेदभाव को समाप्त करना और सभी व्यक्तियों, विशेष रूप से अनुसूचित जातियों की समानता और गरिमा को बढ़ावा देना है।

अनुच्छेद 46: यह अनुच्छेद राज्य को अनुसूचित जातियों और समाज के अन्य कमजोर वर्गों के शैक्षणिक एवं आर्थिक विकास को बढ़ावा देने और उन्हें सामाजिक अन्याय एवं सभी प्रकार के शोषण से बचाने का निर्देश देता है।

अनुच्छेद 243D(4): यह अनुच्छेद पंचायतों (स्थानीय स्वशासन संस्थानों) में अनुसूचित जातियों के लिए सीटों के आरक्षण को अनिवार्य बनाता है ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि उनका प्रतिनिधित्व, क्षेत्र में उनकी आबादी के अनुपात में हो।

अनुच्छेद 243T(4): यह अनुच्छेद नगरपालिकाओं (शहरी स्थानीय निकायों) में अनुसूचित जातियों के लिए सीटों के आरक्षण को अनिवार्य बनाता है, जो क्षेत्र में उनकी आबादी के अनुपात में होता है।

अनुच्छेद 330: यह अनुच्छेद लोकसभा में अनुसूचित जातियों के प्रतिनिधित्व को सुनिश्चित करने के लिए सीटों के आरक्षण का प्रावधान करता है।

अनुच्छेद 332: यह अनुच्छेद राज्य विधानसभाओं में अनुसूचित जातियों के पक्ष में सीटों के आरक्षण का प्रावधान करता है।
सिविल अधिकार संरक्षण अधिनियम, 1955: इसका उद्देश्य भारत में अस्पृश्यता और जाति आधारित भेदभाव को समाप्त करना है।

अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989: इसका उद्देश्य भारत में अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के खिलाफ अत्याचार को रोकना है।

मैन्युअल सफाई कर्मचारियों के रूप में रोजगार का निषेध और उनके पुनर्वास अधिनियम, 2013: अधिनियम के उद्देश्य हैं:
1. अस्वच्छ शौचालयों की पहचान करना और उन्हें समाप्त करना।
2. मैला ढोने वालों के रोजगार को प्रतिबंधित करना।
3. सीवर और सेप्टिक टैंकों की खतरनाक मैन्युअल सफाई को रोकना।
4. हाथ से मैला ढोने वालों की पहचान करना और उनका पुनर्वास करना।
  • सिविल अधिकार संरक्षण अधिनियम, 1955: इसका उद्देश्य भारत में अस्पृश्यता और जाति आधारित भेदभाव को समाप्त करना है।
  • अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989: इसका उद्देश्य भारत में अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के खिलाफ अत्याचार को रोकना है।
  • मैन्युअल सफाई कर्मचारियों के रूप में रोजगार का निषेध और उनके पुनर्वास अधिनियम, 2013: अधिनियम के उद्देश्य हैं:
  • अस्वच्छ शौचालयों की पहचान करना और उन्हें समाप्त करना।
  • मैला ढोने वालों के रोजगार को प्रतिबंधित करना।
  • सीवर और सेप्टिक टैंकों की खतरनाक मैन्युअल सफाई को रोकना।
  • हाथ से मैला ढोने वालों की पहचान करना और उनका पुनर्वास करना।

राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग में कितने सदस्य होते हैं?

राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग (NCSC) में एक अध्यक्ष, एक उपाध्यक्ष और तीन अन्य सदस्य होते हैं।

राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग (NCSC) के सदस्यों की नियुक्ति कैसे की जाती है?

राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग (NCSC) के सदस्यों की नियुक्ति भारत के राष्ट्रपति द्वारा की जाती है।

राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग (NCSC) को संविधान के किस अनुच्छेद के तहत शक्ति प्राप्त होती है?

राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग (NCSC) को भारतीय संविधान के अनुच्छेद 338 के तहत शक्ति प्राप्त होती है।

सामान्य अध्ययन-2
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