बाल मजदूरी (निषेध एवं नियमन) अधिनियम, 1986 के अनुसार, 14 वर्ष से कम आयु के किसी बच्चे को किसी कारखाने या खान के कार्य में लगाया जाना अथवा अन्य किसी जोखिमपूर्ण रोजगार में नियोक्त किया जाना, बाल श्रम के अंतर्गत आता है।
बाल श्रम के अंतर्गत बच्चों से इस तरह कार्य कराया जाता है जिससे उनका बचपन, क्षमता और आत्म-सम्मान छीन जाता है।
- इसमें वह कार्य शामिल है जो बच्चों के शारीरिक, मानसिक, सामाजिक या नैतिक-कल्याण के लिए खतरनाक या हानिकारक है।
- इसमें वह कार्य भी शामिल है जो उन्हें स्कूल जाने से रोकते है, या तो उन्हें स्कूल जाने की अनुमति नहीं देते या उन्हें स्कूल से शीघ्र जाने के लिए मजबूर करते है।
किसी विशेष प्रकार के कार्य को बाल श्रम माना जाएगा या नहीं, यह बच्चे की उम्र, कार्य के प्रकार और घंटे पर निर्भर करता है। इसके साथ ही बाल श्रम विभिन्न देशों द्वारा निर्धारित नियमों जैसे कारकों पर भी निर्भर करता है। बाल श्रम की परिभाषा एक देश से दूसरे देश में और यहाँ तक कि एक देश के विभिन्न उद्योगों में भी भिन्न हो सकती है।
भारत में बाल श्रम के तथ्य एवं आँकड़े
- भारत में कुल बाल-जनसंख्या (5-14 वर्ष): 6 मिलियन है (जनगणना 2011)।
- भारत में कार्यरत बच्चे: 1 मिलियन (कुल बाल आबादी का 3.9%)
“मुख्य श्रमिक” या “सीमांत श्रमिक”। - भारत में स्कूल न जाने वाले बच्चे: 7 मिलियन से अधिक।
- 2001 से 2011 के दौरान भारत में बाल श्रम में 6 मिलियन की कमी आयी।
- यह गिरावट ग्रामीण क्षेत्रों में अधिक दिखाई दे रही है, जबकि शहरी क्षेत्रों में बाल श्रमिकों की संख्या में वृद्धि हुई है, जो छोटी नौकरियों में बाल श्रमिकों की बढ़ती माँग का संकेत देता है।
बाल श्रम के कारण
- निर्धनता: भारत में इस समस्या का सबसे बड़ा कारण निर्धनता है। गरीब परिवारों के बच्चों को प्राय: अपने परिवार को आर्थिक रूप से सहारा देने के लिए कार्य करना पड़ता है। वे कारखानों में, कृषि में या अनौपचारिक अर्थव्यवस्था में कार्य करते हैं।
- गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तक पहुँच का अभाव: भारत में कई बच्चों को अच्छे स्कूलों तक पहुँच नहीं है। जब बच्चों की गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तक पहुँच नहीं होती है, तो उनके स्कूल जाने की बजाय कार्य करने की संभावना अधिक हो जाती है।
- अनौपचारिक अर्थव्यवस्था का विकास: अनौपचारिक अर्थव्यवस्था छोटे व्यवसायों और स्व-रोज़गार करने वाले श्रमिकों से बनी है। असंगठित क्षेत्रो में कार्यरत कर्मचारियों का वेतन बहुत कम होने या आकस्मिक दुर्घटना के कारण परिवार के बच्चो को बालश्रम को मजबूरन करना पड़ता है।
- जागरुकता का अभाव: अधिकाँश माता-पिता इस समस्या के शारीरिक, मानसिक और मनोवैज्ञानिक दुष्परिणामों से अनभिज्ञ हैं।
- सशस्त्र संघर्ष: सशस्त्र संघर्ष बाल श्रम को बढ़ावा दे सकता है। जब युद्ध होता है, तो बच्चों को प्राय: अपने परिवारों का समर्थन करने के लिए काम पर भेजा जाता है।
- भेदभाव: भेदभाव बाल श्रम को बढ़ावा दे सकता है। जब बच्चों के साथ भेदभाव किया जाता है, तो उन्हें शिक्षा और रोजगार के अवसरों तक पहुँच से वंचित किया जाता है।
- प्रवास: प्रवास बाल श्रम को बढ़ावा दे सकता है। जब बच्चे अपने परिवारों के साथ नए देशों में जाते हैं, तो वे प्राय: शोषण के शिकार हो सकते हैं।
ऐसे कई अन्य कारक हैं जो इस समस्या को बढ़ावा देते हैं, जैसे सामाजिक मानदंड, सांस्कृतिक विश्वास आदि।
बाल श्रम के दुष्परिणाम
इसके परिणामों का बच्चों, समाज और समग्र रूप से राष्ट्र पर दूरगामी प्रभाव पड़ता है।
बाल परिणाम
- स्वास्थ्य संबंधी जोखिम: इससे बच्चों को हानिकारक कार्य-परिस्थितियों, शारीरिक, मानसिक शोषण और लंबे समय तक श्रम करना पड़ता है, जिसके परिणामस्वरूप चोटें, बीमारियाँ और विकास संबंधी समस्याएँ हो सकती हैं।
- शिक्षा से वंचित: कार्यरत बच्चों को प्राय: शिक्षा तक पहुँच से वंचित कर दिया जाता है, जिससे बुनियादी साक्षरता के साथ ही उनके भविष्य के अवसर भी सीमित हो जाते हैं और निर्धनता के चक्र में फंसे रहते है।
- अवरुद्ध विकास: यह बालकावस्था के सामान्य विकास को बाधित करता है, बच्चों को खेलने के समय, सामाजिक संपर्क और भावनात्मक कल्याण से वंचित करता है, उनके शारीरिक, संज्ञानात्मक और भावनात्मक विकास में बाधा पहुँचाता है।
सामाजिक परिणाम
- मानवाधिकारों को कमज़ोर करना: यह बच्चों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है, उन्हें शिक्षा, सुरक्षा और सुरक्षित एवं स्वस्थ वातावरण के अधिकार से वंचित करता है।
- निर्धनता और असमानता: यह परिवारों को निर्धनता के चक्र में फंसाए रखता है, क्योंकि बच्चों की कमाई घरेलू आय में न्यूनतम योगदान देती है और उनकी दीर्घकालिक आर्थिक संभावनाओं में बाधा बनती है।
- सामाजिक विखंडन: यह परिवार और सामुदायिक गतिशीलता को बाधित करता है क्योंकि बच्चों को उचित देखभाल और शिक्षा प्राप्त करने की जगह कार्य करने के लिए मजबूर किया जाता है। इससे सामाजिक संरचनाएँ टूटती जाती हैं और अंतरपीढ़ीगत निर्धनता को बढ़ावा मिलता है।
राष्ट्रीय परिणाम
- आर्थिक निहितार्थ: यह बच्चों को शिक्षा से वंचित करता है, जिससे कार्यबल अकुशल होता है, उत्पादकता भी कम हो जाती है एवं आर्थिक उन्नति के अवसर सीमित हो जाते हैं।
- मानव पूँजी का नुकसान: बाल श्रम के कारण संभावित मानव पूँजी का नुकसान होता है क्योंकि बच्चे शिक्षा एवं कौशल विकास से वंचित रह जाते हैं। इससे विश्व स्तर पर प्रतिस्पर्धा करने और सतत विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने की देश की क्षमता कम हो जाती है।
- सामाजिक कल्याण का बोझ: शारीरिक और मनोवैज्ञानिक परिणामों से राष्ट्र के लिए स्वास्थ्य देखभाल और सामाजिक कल्याण लागत में वृद्धि होती है। सरकारों को इन मुद्दों के समाधान के लिए अन्य महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों से धन कम करके इन मुद्दों के लिए संसाधन आवंटित करने पड़ते हैं।
भारत में बाल श्रम की समस्या का समाधान
भारत में बाल श्रम की समस्या से निपटने के लिए विभिन्न हितधारकों को शामिल करते हुए एक व्यापक दृष्टिकोण की आवश्यकता है।
- विधायी ढांचे को मजबूत बनाना: बच्चों के लिए व्यापक सुरक्षा और अपराधियों के लिए सख्त दंड सुनिश्चित करने के लिए बाल श्रम (निषेध और विनियमन) अधिनियम जैसे मौजूदा कानूनों को कड़ाई से लागू करना तथा संशोधन अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप होने चाहिए।
- गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तक पहुँच: सभी बच्चों के लिए निःशुल्क एवं गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की सार्वभौमिक पहुँच सुनिश्चित करना। इसके साथ ही शिक्षा का अधिकार अधिनियम लागू करना, ड्रॉपआउट दरों को कम करना और स्कूलों में नामांकन बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित करना।
- निर्धनता उन्मूलन: निर्धनता उन्मूलन कार्यक्रमों के अंतर्गत निर्धनता में जीवन निर्वाह करने वाले परिवारों को आर्थिक सहायता प्रदान की जाती है। इसके साथ ही माता-पिता के लिए आजीविका के अवसरों को बढ़ावा देकर बाल श्रम के मूल कारणों से निपटा जा सकता हैं।
- जागरूकता एवं संवेदनशीलता: बच्चों के शारीरिक, मानसिक और शैक्षिक विकास पर बाल श्रम के हानिकारक प्रभावों के बारे में माता-पिता, समुदायों और नियोक्ताओं को अवगत कराते हुए व्यापक जागरूकता अभियान संचालित किये जाने चाहिए।
- पुनर्वास एवं सामाजिक संरक्षण: बाल श्रम से निकाले गए बच्चों के लिए शिक्षा, व्यावसायिक प्रशिक्षण, स्वास्थ्य देखभाल और मनोवैज्ञानिक सहायता तक पहुँच सहित व्यापक पुनर्वास कार्यक्रम विकसित और कार्यान्वित करने चाहिए। बच्चों को श्रम बल में जाने से रोकने के लिए कमजोर परिवारों के लिए सामाजिक सुरक्षा योजनाएँ लागू करनी चाहिए।
- अंतर्राष्ट्रीय सहयोग: बाल श्रम से प्रभावी ढंग से निपटने के लिए विशेषज्ञता, तकनीकी सहायता और वित्तीय संसाधनों तक पहुँच के लिए अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) और यूनिसेफ जैसे अंतरराष्ट्रीय संगठनों के साथ समन्वय एवं सहयोग करना चाहिए।
- स्थानीय समुदायों को सशक्त बनाना: बाल श्रम को रोकने में माता-पिता, शिक्षकों और समुदाय के नेताओं सहित स्थानीय समुदायों को शामिल करना चाहिए। उन्हें बाल श्रम के मामलों की पहचान करने और रिपोर्ट करने के लिए सशक्त बनाना तथा पुनर्वास और पुनर्एकीकरण प्रयासों के लिए सहायता प्रदान करना।
यह समझना महत्त्वपूर्ण है कि बाल श्रम को संबोधित करना एक जटिल और बहुआयामी मुद्दा है जिसमें स्थायी परिवर्तन लाने के लिए निरंतर प्रयासों, सहयोग और सभी हितधारकों की प्रतिबद्धता की आवश्यकता होती है।
निष्कर्ष
बच्चों के कल्याण, समाज की प्रगति और राष्ट्र के सतत विकास के लिए बाल श्रम को संबोधित करना और समाप्त करना महत्त्वपूर्ण है। बच्चों के अधिकारों की सुरक्षा और उनके समग्र विकास को सुनिश्चित करने के लिए सशक्त प्रयासों, व्यापक नीतियों और विभिन्न हितधारकों की सक्रिय भागीदारी की आवश्यकता है।
सामान्य प्रश्नोत्तर
भारत में वर्तमान में कितने बच्चे श्रमिक के रूप में कार्य कर रहे हैं?
लगभग 10.1 मिलियन (कुल बाल जनसंख्या का 3.9%) “मुख्य श्रमिक” या “सीमांत श्रमिक” है।
भारत में बाल श्रम का प्रमुख कारण क्या है?
भारत में बाल श्रम का मुख्य कारण निर्धनता है। निर्धनता में रहने वाले परिवार प्राय:जीवन-निर्वहन के साधन के रूप में बाल श्रम का सहारा लेते हैं, क्योंकि बच्चों को कम भुगतान किया जाता है और वे शोषण के प्रति अधिक संवेदनशील होते हैं।
बाल श्रम के 10 कारण क्या हैं?
बाल श्रम के 10 कारणों में गरीबी, शिक्षा तक पहुँच का अभाव, बाल श्रम कानूनों का सीमित प्रवर्तन, सांस्कृतिक दृष्टिकोण और मानदंड, सशस्त्र संघर्ष, भेदभाव, अपर्याप्त सामाजिक सुरक्षा, प्रवासन, वैश्वीकरण और सस्ते श्रम की माँग शामिल हैं।